व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र स्थूल व सूक्ष्म भेद से ही विकृति अथवा सुकृति है । विज्ञान व विवेक के अध्ययन एवम् प्रयोग से विकास (जागृति) तथा अज्ञान एवं अविवेक से ही हास है ।
श्र जागृति व ह्रास भेद से ही मानव का मनाकार भेद होता है ।
श्र आसक्ति एवम् यथार्थ (अनासक्ति) भेद से ही मानव की मनः स्वस्थता की आशाएँ हैं ।
श्र आशाएँ भ्रम मुक्ति पूर्वक सार्वभौम व्यवस्था अर्थ एवम् काम के रूप में प्रलोभन, प्रत्याशा भेद से दर्शन (शास्त्र); स्वीकृत व अनुकरण भेद से काव्य; जिस कार्य, विचार व व्यवहार से क्लेशोदय हो वह निषेध तथा जिससे सुखोदय होता है, यही विधि के रूप में स्वीकारी जाती है ।
श्र प्राकृतिक एवम् कृत्रिम वातावरण मानव के लिए अनुकूल या प्रतिकूल होता है ।
श्र मानव में आशाएँ अमानवीय, मानवीय व अतिमानवीय अवस्था भेद से हैं ।
श्र प्रवृत्ति व निवृत्ति (बंधन एवम् मोक्ष के स्पष्टीकरण) भेद से शास्त्र, विहिताविहित भेद से आशाएँ, विचार, इच्छा एवम् ऋतम्भरा है, जिसकी विवेचना, अध्ययन व प्रयोग करने का अवकाश एवम् अवसर केवल मानव में है ।
श्र जड़ वस्तु में मात्र स्थिति-गति होना रहना पाया जाता है ।
श्र समस्त जड़ क्रिया में परमाणुओं को क्रियाशील रहना पाया जाता है े। परमाणुएं समूह के रूप में अथवा संगठित रूप में क्रियाशील मध्यांश तथा आश्रित अंशों सहित क्रिया के रूप में परिलक्षित होता है । इसलिए ज्ञात होता है कि जड़ पदार्थ में क्रियाशीलता स्वतंत्र है ।
श्र जब एक परमाणु विकासपूर्वक चैतन्य हो जाता है, उसी समय से जीने की आशा बन्धन स्वरूप पाई जाती है । यह इससे सिद्ध होता है कि हर जीव जीना चाहता है ।
श्र मानव बुद्धिजीवी, विचारशील होने के कारण, विचार, इच्छा, अहंकार अथवा संकल्प का प्रयोग वृत्ति, चित्त तथा बुद्धि द्वारा करता है ।
श्र वृत्ति का बंधन विचार का बन्धन है, जो स्वविचार को श्रेष्ठ मानने से है तथा इससे अमानवीय विचार का प्रसव होता है क्योंकि मानव कल्पनाशील है ।
श्र न्याय पूर्ण विचार से आशा बन्धन एवं विचार बन्धन से मुक्ति होती है ।
श्र चित्त का बन्धन इच्छा का बन्धन है, जो स्वयं द्वारा किए गए चित्रण को श्रेष्ठ (भ्रमवश चिन्तन) मानने से होता है । इससे अमानवीयता का पोषण तथा चिन्ता का जन्म होता है ।
श्र धर्म पूर्ण चिन्तन से अथवा चित्रण से इच्छा बन्धन से मुक्ति होती है ।
श्र भ्रमित मानव मान्यता पूर्वक चित्रण क्रिया से स्वयं को श्रेष्ठ मानने से इच्छा बन्धन होता है । यही अभिमान है ।