व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र बौद्धिक समाधान तथा भौतिक समृद्धि की पुष्टि के लिए स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण भेद से दर्शन है ।

श्र शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध की जानकारी को स्थूल मन, वृत्ति, चित्त एवं सापेक्ष शक्तियों की जानकारी को सूक्ष्म समझ और निरपेक्ष शक्ति एवं उसको अनुभव करने वाली आत्मा और बोध करने वाली बुद्धि की समझ को कारणात्मक समझ की संज्ञा है ।

श्र संपूर्ण इकाईयों की अभिव्यक्तियाँ सत्ता में सम्पृक्त क्रिया के रूप में ही है तथा समस्त क्रियाएँ रूप और शब्द के भेद से है । यह समस्त क्रियाएँ मानव मेंं स्फुरण, प्रेरणा, क्रांति, संवेग, आवेग तथा प्रयोग के रूप में परिलक्षित हैं ।

श्र रूप क्रिया का तात्पर्य :- हर इकाई में निहित गुण, स्वभाव, धर्म से है । शब्द क्रिया का तात्पर्य-रूप क्रिया और उसमें निहित अर्थ को निर्देशित करने के रूप में है ।

:: निर्देशित करने का तात्पर्य :- परस्परता में संप्रेषणा समझना-समझाना करना और संप्रेषित होना । यही शब्द क्रिया की सार्थकता है ।

:: स्फु रण :- जागृति की ओर प्राप्त प्रेरणा की स्फुरण संज्ञा है ।

:: प्रेरणा :- मिलन के अनंतर उभय सुकृति (जागृति) की ओर गति की प्रेरणा संज्ञा है ।

★ उभय सुकृति :- गुरुमूल्यन एवं दीर्घ-परिणाम या अपरिणामता और जागृति की ओर गति ।

:: प्रतिक्रांति :- मिलन के अनंतर उभय विकृति (ह्रास) की ओर गति की प्रतिक्रांति संज्ञा है ।

★ उभय विकृति :- अवमूल्यन एवं परिणाम या शीघ्र परिणाम एवं ह्रास की ओर गति ।

:: संवेग :- संयोग से प्राप्त वेग की संवेग संज्ञा है ।

:: आवेग :- आवश्यकतानुसार प्राप्त वेग की आवेग संज्ञा है ।

:: प्रयोग :- प्रयासपूर्वक प्राप्त वेग की प्रयोग संज्ञा है ।

★ क्रिया को निर्देशित करने के लिये प्रयुक्त अक्षर या अक्षर समूह को ‘शब्द’, शब्द के अर्थ को व्यक्त करने हेतु प्रयुक्त शब्द या शब्द समूह को ‘परिभाषा’ तथा परिभाषा सहज मौलिकता ही ‘भाव’ है । अस्तित्व में भाव वस्तु के रूप में होता है । सभी भाव सहअस्तित्व में होने के रूप में है ।

श्र शब्द केवल किसी क्रिया एवं वस्तु का नाम है, जबकि परिभाषा, शब्द एवं क्रिया की मौलिकता को स्पष्ट करती है, तत्पश्चात् भाषा का रूप धारण करती है ।