व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र बौद्धिक समाधान के लिए व्यवहारिक एकसूत्रता अनिवार्य है । एकसूत्रता अपने में ज्ञान-विज्ञान-विवेक में संगीत है अथवा पूरकता है ।

श्र वैचारिक एवं व्यवहारिक संतुलन के लिए मानवीयता की सुरक्षा तथा संरक्षण की नीति एवं रीति आवश्यक है ।

:: सुरक्षा :- जागृति सहज यथा स्थिति को बनाये रखना सुरक्षा है ।

★ जागृत मानव परंपरा में मानवीयता ही यथा स्थिति है । मानवीयता की सुरक्षा में संस्कृति, सभ्यता, विधि (मानवीय आचार संहिता) एवं व्यवस्था चारों परस्पर पूरक तथ्य हैं । इन चारों पक्ष का अध्ययन पूर्ण हुए बिना मानवीयता का संरक्षण संभव नहीं है, क्योंकि गलती एवं अपराध प्रवृत्ति व कृत्य से अमानवीयता उजागर होती है । मानवीयता से पूर्ण होने के पूर्व मानव अमानवीयता के स्तर में अवस्थित है ही ।

★ मानवीयता का अध्ययन अपेक्षाकृत रीति से तीन प्रकार से वर्णित किया जा चुका है, वह है- मानवीय स्वभाव, मानवीय दृष्टि एवं मानवीय विषय । इनके स्थापन, पोषण एवं वर्धन हेतु मानव को प्रयासरत रहना ही होगा ।

★ मानवीयतापूर्ण समाज या व्यवस्था द्वारा, प्रत्येक संबंध एवं संपर्क का निर्वाह करते हुए, मानवीयता के संरक्षण के लिये किए गए समस्त अध्ययनात्मक प्रयास की संस्कार संज्ञा है तथा इसके आचरण, प्रचार और प्रदर्शन-पक्ष की संस्कृति संज्ञा है ।

श्र संस्कृति का पोषण सभ्यता से, सभ्यता का पोषण विधि (मानवीय आचार संहिता) से, विधि का पोषण व्यवस्था से, आचरण का पोषण संस्कृति से है, जो अन्योन्याश्रित व संबंधित है ।

श्र मानव समाज के गठन का मूल उद्देश्य भय मुक्त होना तथा जागृत होना रहना है ।

श्र मानव के लिए समस्त भय के तीन ही कारण परिलक्षित होते हैंं :-

(1) प्राकृतिक भय

(2) पाशविक भय

(3) मानव में निहित अमानवीयता का भय ।

श्र विकास व ह्रास भेद से अवस्था, अवस्था भेद से आशा, आशा भेद से आकर्षण-प्रति आकर्षण, आकर्षण-प्रत्याकर्षण भेद से आसक्ति, आसक्ति भेद से विवशता, विवशता भेद से संवेग, संवेग भेद से कर्म, कर्म भेद से फल, फल भेद से समस्या एवं समाधान, समस्या एवं समाधान भेद से ही ह्रास-विकास-जागृति सहज गतियाँ हैं, जिससे मानवीयता, अमानवीयता एवं अतिमानवीयता का प्रादुर्भाव प्रमाण है ।

श्र मानव की जागृति बौद्धिक समाधान एवं भौतिक समृद्धि के लिए ही है ।