व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
★ उपरिवर्णित एकसूत्रता के अपेक्षाकृत अध्ययन के आधार पर मानव अपने ह्रास एवं जागृति के कारण भ्रांत, भ्रान्ताभ्रान्त तथा निर्भ्रान्त अवस्था में परिलक्षित होना समीचीन है ।
श्र निर्भ्रान्त मानव से ही एकसूत्रता सफल है । इसलिए यह सिद्ध होता है कि निर्भ्रान्त मानव बनने के लिए सामाजिकता की परमावश्यकता है ।
श्र विवेक एवं विज्ञान के संतुलित अध्ययन तथा व्यवस्था के अभाव में मानव में एकसूत्रता नहीं पाई जाती है ।
:: भौतिक रासायनिक प्रयोगों के अध्ययन को भौतिक विज्ञान संज्ञा एवं बौद्धिक अध्ययन को विवेक संज्ञा है । विवेक पूर्वक लक्ष्य का निर्धारण होता है तथा विज्ञान द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए दिशा का निर्धारण होता है ।
श्र बौद्धिक अध्ययन की पूर्णता से ही व्यापकता का बोध है ।
श्र भौतिक समृद्धि के लिए भौतिकीय अध्ययन एवं कर्माभ्यास आवश्यक है, जो कि उपयोग और सदुपयोग दोनों में प्रयुक्त है । साथ ही समस्त अध्ययन कर्म आवश्यकता की पूर्ति हेतु उत्पादन, सदुपयोग क्रियाएँ जागृत बुद्धि के अभाव में सिद्ध नहीं है । अत: हम मानव बौद्धिक अध्ययन हेतु बाध्य हैं ।
श्र अध्ययन के मूल में जड़-चैतन्य पक्ष का तथा जड़-चैतन्य पक्ष के मूल में ह्रास एवं विकास का; ह्रास एवं विकास के मूल में श्रम, गति व परिणाम का; विकास के अर्थ में परिणाम का अमरत्व, श्रम का विश्राम, गति का गन्तव्य; श्रम, गति व परिणाम के मूल में इकाईत्व का, इकाईत्व के मूल में साम्य रूप से प्राप्त ऊर्जा रूपी सत्ता में अनुभव करने वाली विश्रामस्थ जीवन इकाई का अध्ययन आवश्यक है ।
श्र प्रत्येक अवस्था के परमाणु क्रियाशील हैं । इन सबको सम्यक रूप से प्राप्त सत्ता शून्य, व्यापक ही है ।
श्र अनंत इकाईयाँ व्यापक वस्तु में प्रेरणा पाते हुए क्रियाशील हैं, मानव व्यापक वस्तु में प्रेरणा पाते हुए अनुभव के लिए प्यासा है । अनुभव हेतु अर्हता के अभाव में ही इसके योग्य क्षमता योग्यता पात्रता के विकास के लिए मानव श्रमशील है अथवा श्रम में व्यस्त है ।
श्र ज्ञान अनुभूति के बिना मानव में विश्राम नहीं है, इसीलिये जागृति का अभाव नहीं है क्योंकि श्रम का क्षोभ ही विश्राम की तृषा है ।
श्र व्यवसाय, प्रयोग, व्यवहार, उपयोग व सदुपयोग की क्रिया, प्रक्रिया, पद्धति व उपलब्धियाँ प्रधानत: विवेक सम्मत विज्ञान के अध्ययन पर निर्भर हैं।
श्र अनुभव, प्रमाण, बोध की संप्रेषणा मेधसतंत्र के माध्यम से होता है । यह मानव परंपरा में ही होता है ।