व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र अनुभवगामी विधि से सत्यबोध के बिना सत्यानुभूति अभ्युदय, सर्वतोमुखी समाधान संभव नहीं है ।
★ अनुभवगामी बोध (अवधारणा) ः- आत्मा अथवा अनुभव की साक्षी में स्मरण पूर्वक बुद्धि में होने वाली स्वीकृति सहज क्रियाकलाप ।
गुरु द्वारा अनुभव मूलक विधि से कराये गये अध्ययन के फलस्वरूप शिष्य में न्याय, धर्म, सत्य का साक्षात्कार पूर्वक बुद्धि में स्वीकृत होना ।
★ अनुभव मूलक बोध ः- सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में अनुभव और उसकी निरन्तरता के फलस्वरूप अनुभव सहज प्रभाव ही अनुभव बोध है । ऐसे अनुभव बोध के अनन्तर सहज संकल्प की निरन्तरता है । ऐसे बोध और संकल्प का साक्षात्कार ही अनुभवमूलक चिन्तन है । ऐसे चिन्तन का चित्रण और तुलन क्रिया ही अनुभव मूलक विचार है । जागृति मूलक विचार के फलस्वरूप विवेक सम्मत विज्ञान एवं विज्ञान सम्मत विवेक प्रमाणित होता है । फलस्वरूप मूल्यों का आस्वादन सहित मानव परम्परा में संबंधों की पहचान, स्वीकृति, निर्वाह, निरन्तरता ही जागृति सहज अभिव्यक्ति, संप्रेषणा एवं प्रमाण है ।
:: बोध :- बुद्धि में अनुभव बोध व चित्त में अनुभव प्रतीति है ।
:: प्रतीति, आभास, भास :- सहअस्तित्व सहज अनुभव आत्मा मेें होता है । जिसका अनुभवमूलक विधि से बोध बुद्धि में होता है । बुद्धि और चित्त के योग में अनुभव की ‘प्रतीति’ होती है, यही अनुभव का चिन्तन है । चित्त और वृत्ति के योग में अनुभव का ‘आभास’ होता है, जो स्वयं न्याय, धर्म, सत्य रूप में तुलन क्रिया है । वृत्ति और मन के योग में अनुभव का ‘भास’ होता है । जो मूल्यों का आस्वादन और संबंधों का चयन के रूप मेें प्रमाणित हो जाता है ।
श्र जब तक ‘जीवन’ भ्रमित रहता है अथवा मानव भ्रमित रहता है, परंपरा में आत्मबोध रहित बुद्धि को अहंकार नाम दिया गया । भ्रम का अस्तित्व नहीं है । इससे स्पष्ट है कि भ्रम मानव के द्वारा किसी भय प्रलोभनवश स्वीकार की गई मान्याताएँ हैं । मान्यताएँ (भ्रम) चित्त में होने वाले चित्रण तक ही सीमित हैं । अत: बुद्धि भ्रमित नहीं होती । बुद्धि चुप रहती है । अध्ययन, बोध, अनुभव विधि से ही बुद्धि जागृत होती है ।
श्र अहंकार एवं भ्रम यह दोनों सत्यता के प्रति अनर्हता के द्योतक हैं ।
श्र सत्य-बोध अध्ययन सहज अंतिम उपलब्धि है तथा अनुभव स्वभाव है ।
श्र सत्यबोध के बिना सत्यानुभूति तथा सत्यानुभूति के बिना विश्राम नहीं है ।
श्र सत्य, मात्र सत्ता में सम्पृक्त जड़ चैतन्य प्रकृति ही है । यही सह-अस्तित्व रूपी शाश्वत् सत्य है ।