व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र इंद्रिय तृप्ति सामयिक प्रतिक्रिया है ।
:: तृप्ति :- आंदोलनों से मुक्त क्रिया ही तृप्ति है ।
:: आंदोलन :- हृदय के सम्वर्धन तथा संरक्षण की अक्षुण्णता इसके क्रिया एवं गति के संतुलन से बनी रहती है, इस क्रिया एवं गति का घट जाना या बढ़ जाना ही आंदोलन है । आंदोलन का संबंध मूलतः संवर्धन तथा संरक्षण से है ।
★ इन्द्रिय तृप्ति से हृदय तृप्ति आवश्यक नहीं है, पर हृदय तृप्ति से इन्द्रिय तृप्ति होती है ।
श्र लघु मूल्य के बदले गुरु मूल्य का आदाय (प्राप्ति) लाभ है ।
श्र लघु मूल्य के बदले गुरु मूल्य का प्रदाय तीन परिस्थितियों में होता है :-
(1) विवशता वश, (2) स्वेच्छा वश तथा (3) अज्ञान वश ।
श्र समस्त व्यवहार कुल छ: दृष्टियों में परिलक्षित है :-
(1) प्रियाप्रिय (2) हिताहित (3) लाभालाभ (4) न्यायान्याय (5) धर्माधर्म और (6) सत्यासत्य ।
★ अमानवीय दृष्टि से युक्त मानवों का व्यवहार मात्र तीन दृष्टियों यथा-प्रियाप्रिय, हिताहित और लाभालाभ के आश्रय में है । मानवीय दृष्टि से युक्त मानव का व्यवहार न्यायान्याय, धर्माधर्म एवं सत्यासत्य के आश्रय में है ।
श्र मानव के लिए आवश्यकीय व्यवहार न्यायपूर्ण नियमों का पालन है तथा आवश्यकीय विचार धर्मपूर्ण नियमों का पालन है ।
★ उपरोक्त सूत्र के विपरीत नियमों का पालन ही मानव के लिये अनावश्यकीय व्यवहार एवं विचार है ।
★ उपरोक्तानुसार समस्त जीव अर्थात् पशु-पक्षी, वैषयिक-सामुदायिक प्राणी तथा मानव न्यायिक-सामाजिक इकाई सिद्ध होते हैं ।
★ सामान्यत: पशुओं की सामुदायिकता का भास भय की अवस्था में परिलक्षित हुआ है । किसी भी स्थिति में पशुओं की सामुदायिकता का भास अध्ययन, उत्पादन तथा व्यवस्था कार्य में परिलक्षित नहीं हुआ है जबकि जागृत मानवों में सामाजिकता का मूल आधार समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में जीना है ।
★ पशुओं में आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये चार विषय ही प्रसिद्ध हैं, जबकि जागृत मानवों में सामान्यतः ऐषणात्रय अर्थात् पुत्रेषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा पाई जाती है तथा विश्राम सहज रूप में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व में प्रमाण होना पाया जाता है ।