व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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उल्लास, ह्रास

उल्लास ः- मुखरण । उत्थान की और पारदर्शक प्रस्तुति और गति ।

ह्रास ः- समाधान सहित प्रसन्नता व मुस्कान सहित मानवीय लक्ष्य व दिशा की ओर गति ।

शील, संकोच

शील ः- जागृति सहज वैभव को शिष्टता के रूप में सभी आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य में प्रामाणिकता को इंगित कर लेना और कराने की क्रिया का नाम शील है ।

:- शिष्टता पूर्ण लक्षण ।

संकोच ः- अस्वीकृति को शिष्टता से प्रस्तुत करना ।

गुरु, प्रामाणिक

गुरु ः- शिक्षा-संस्कार नियति क्रमानुषंगीय विधि से जिज्ञासाओं और प्रश्नों को समाधान के रूप में अवधारणा में प्रस्थापित करने वाला मानव गुरु है ।

प्रामाणिक ः- प्रमाणों का धारक वाहक-यथा अस्तित्व दर्शन, जीवन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण समुच्चय को प्रयोग, व्यवहार अनुभवपूर्ण विधि से प्रमाणित करना और प्रमाणों के रूप में जीना ।

शिष्य, जिज्ञासु

शिष्य ः- जागृति लक्ष्य की पूर्ति के लिए शिक्षा-संस्कार ग्रहण करने, स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत व्यक्ति, जिसमें गुरु का सम्बन्ध स्वीकृत हो चुका रहता है ।

जिज्ञासु ः- जीवन ज्ञान सहित निर्भ्रम शिक्षा ग्रहण करने के लिए तीव्र इच्छा का प्रकाशन ।

भाई-मित्र, प्रगति

भाई ः- एकोदर (एक उदर (पेट) से होने वाले) को भाई का संबोधन है । भाईवत् स्वीकृतियाँ या मित्र ।

मित्र ः- सहोदरवत् (सगे भाई जैसा) जो होते हैं, उन्हें भाई व मित्र का संबोधन है ।

प्रगति ः- मानवत्व रूपी सहज व्यवस्था व समग्र व्यवस्था अर्थात् परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी ।

ः- समाधान प्रधान समृद्धि सहज अपेक्षा प्रक्रिया और प्रमाण ।