व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
:- स्वयं की प्रतिरूपता की स्वीकृति, उसकी निरंतरता ।
उदारता :- स्वप्रसन्नता पूर्वक, दूसरों की जीवन जागृति, शरीर स्वस्थता व समृद्धि के लिए आवश्यकतानुसार तन, मन, धन रूपी अर्थ का अर्पण-समर्पण करना ।
:- प्राप्त समाधान रूपी सुख सुविधाओं (समृद्धि) का, दूसरोंं के लिए सदुपयोग करना और प्रसन्न होना ।
सम्मान, सौहार्द्र
सम्मान :- व्यक्तित्व, प्रतिभा की स्वीकृति और उसका संतुलन सहज प्रकाशन ।
:- व्यक्तित्व, प्रतिभा की श्रेष्ठता की स्वीकृति, निरंतरता व स्पष्टता ।
सौहार्द्र :- जिस प्रकार से स्वीकृति हो उस अवधारणा, अनुभव, स्मृति और श्रुति को यथावत् प्रस्तुत करने का क्रियाकलाप ।
स्नेह, निष्ठा
स्नेह :- न्यायपूर्ण व्यवहार में निर्विरोधिता ।
:- संतुष्टि में, से, के लिए स्वयं स्फूर्त मिलन और निरंतरता ।
निष्ठा :- जागृति पूर्ण लक्ष्य में निश्चित अवधारणा व स्मरण पूर्वक प्राप्त करने व प्रमाणित करने का निरंतर प्रयास ।
पुत्र-पुत्री, अनुराग
पुत्र-पुत्री :- शरीर रचना की कारकता सहज स्वीकृति और जीवन जागृति में पूरकता निर्वाह करने वाली मानव इकाई ही पिता है ।
:- पोषण, सुरक्षा की स्वीकृति ।
:- संतानों के पोषण संरक्षण के लिए, उत्पादन हेतू सक्षम बनाने हेतु आधार के रूप में स्वयं को स्वीकारना ।
:- शिक्षा संस्कार प्रदान करने में स्वयं को सक्षम स्वीकारना ।
:- सम्पूर्ण ज्ञान प्रावधानित करने के लिए स्वयं में स्वीकारना ।
अनुराग ः- निर्भ्रमता में प्राप्त आप्लावन (अनुपम रसास्वादन संभावना की स्वीकृति)
:- आप्लावन अर्थात् संबंधो में निहित मूल्यों का निर्वाह करने में सफलता ।