व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
साथी, दायित्व
साथी ः- सर्वतोमुखी समाधान प्राप्त व्यक्ति ।
:- स्वयं स्फूर्त विधि से दृष्टा पद में हों ।
:- स्वयं को जानकर, मानकर, पहचान कर, निर्वाह करने के क्रम में साथी कहलाता है ।
दायित्व ः- परस्पर व्यवहार, व्यवसाय एवं व्यवस्थात्मक संबंधों में निहित, मूल्यानुभूति सहित, शिष्टतापूर्ण व्यवहार ।
सहयोगी, कर्तव्य
सहयोगी ः- प्रणेता अथवा अभ्युदय के अर्थ में मार्गदर्शक अथवा प्रेरक के साथ-साथ अनुगमन करना, स्वीकार पूर्वक गतित होना । उत्पादन में सहयोगी होना ।
कर्तव्य ः- प्रत्येक स्तर में प्राप्त संबंधों एवं सम्पर्कों और उसमें निहित मूल्यों का निर्वाह ।
स्वायत्त, समृद्धि
स्वायत्त ः- समृद्धि का अनुभव ही स्वायत्त है ।
समृद्धि ः- आवश्यकता से अधिक उत्पादन समृद्धि है ।
हित, स्वास्थ्य
हित ः- शरीर सीमान्तवर्तीय उपयोगिता ।
स्वास्थ्य ः- मन एवं प्रवृत्तियों के अनुसार कर्मेन्द्रिय व ज्ञानेन्द्रियों का कार्य करने योग्य स्थिति में होना ।
:- स्पन्दन ः- स्फुरण योग्य स्थिति में कर्मेन्द्रिय एवं ज्ञानेन्द्रिय का होना ।
प्रिय, प्रवृत्तियाँ
प्रिय :- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्धात्मक ज्ञानेन्द्रियों के लिए शरीर स्वस्थता के अर्थ में अनुकूल योग संयोग ।
प्रवृत्तियाँ :- उपलब्धि एवं प्रयोजन सिद्धि हेतु प्रयुक्त बौद्धिक संवेग ।
:- परावर्तन होने के लिए जीवन में होने वाली आशा, विचार, इच्छा, संकल्पों एवं प्रामाणिकता की स्थिति, व्यवहार के अर्थ में मानवीयतापूर्ण मानसिकता ।