व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
धीरता :- न्याय के प्रति निष्ठा एवं दृढ़ता ।
भाव, संवेग
भाव :- मौलिकता=मूल्य=जिम्मेदारी, भागीदारी ।
संवेग :- संयोग से प्राप्त गति ।
जाति, काल
जाति :- रूप, गुण, स्वभाव व धर्म की विशिष्टता, भौतिक क्रिया, एकता, विविधता ।
:- भौतिक वस्तु में अनेक प्रकार के परमाणु ।
काल :- क्रिया की अवधि ।
तुष्टि, पुष्टि
तुष्टि :- समझदारी पूर्वक छ: सद्गुणों से संपन्न होना, परिवार मेें समाधान, समृद्धि को प्रमाणित करना । अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करना निरंतर तुष्टि का स्वरूप है ।
पुष्टि :- तुष्टि का निरंतर मूल्यांकन में निरीक्षण, परीक्षणपूर्वक किया जाना । पूर्णता की निरंतरता ही जीवन सहज संतुष्टि है । मानव परंपरा के रूप में उसका लोकव्यापीकरण होना ही पुष्टि है ।
श्र मन सहज चौसठ क्रियाएँ
चयन व आस्वादन रूपी चौसठ क्रियाकलाप
भक्ति, तन्मयता
भक्ति :- भय से मुक्त होने का क्रियाकलाप और श्रम मुक्ति ।
:- भजन और सेवा से संयुक्त अभिव्यक्ति संप्रेषणा, प्रकाशन क्रियाकलाप ।
:- भक्ति संपूर्ण निष्ठा की अभिव्यक्ति है ।
तन्मयता ः- सम्यक निष्ठा के लिए निश्चित लक्ष्य एवं दिशा हेतु निर्देशन विधि से जागृति सहज प्रभाव में अभिभूत होना तन्मयता है ।
ममता,उदारता
ममता :- अपनत्व की पराकाष्ठा पूर्वक पोषण संरक्षण कार्य ।