व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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पिता, संरक्षण

संरक्षण ः- निर्बाधता । सुगमता के अर्थ में है ।

ज्ञानेंद्रिय - कर्मेन्द्रिय क्रियाएं

मृदु-कठोर, वहन-संवहन

परिभाषा ः- संवहन-मृदु ः- (1) स्पर्शेंद्रिय से कम भार व दबाव को सहने वाली वस्तुएँ । (2) संकुचन पूर्वक वहन करने वाली वस्तुएँ ।

कठोर ः- स्पर्शेंद्रिय से अधिक भार व दबाव को सहने वाली वस्तुएं । पूर्णता के वेदना सहित, गति वहन करना ।

परिभाषा :- छ: प्रकार की रुचियां जीभ के संयोग में आई वस्तु चाहे तरल, विरल, ठोस क्यों न हो, परिणाम स्वरूप ही पहचानना होता है । हर जागृत मानव संदवेदनाओं के प्रयोजनों का स्वस्थ शरीर के प्रयोजनों के लिए पहचाने रहना स्वाभाविक रहता है ।

शीत/उष्ण:- पोषण/शोषण

खट्टा :- पोषण/शोषण

मीठा :- पोषण/शोषण

चरपरा :- पोषण/शोषण

कड़ुवा :- पोषण/शोषण

कसैला :- पोषण/शोषण

खारा :- पोषण/शोषण

सुगन्ध/दुर्गन्ध :- प्रश्वसन/विश्वसन

सुरूप/कुरूप :- अपनापन/परायापन

पोषण :- इकाई + अनुकूल इकाई ।

शोषण :- इकाई - अनुकूल इकाई ।

:- इकाई + प्रतिकूल इकाई ।

“सर्व शुभ हो”

ग्रंथ