व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
★ न्याय पूर्ण व्यवहार तथा व्यवसाय के समत्व में सहअस्तित्व तथा समृद्धि, शरीर तथा हृदय के समत्व में तृप्ति, हृदय तथा प्राण के समत्व में आरोग्य तथा पुष्टि, प्राण एवं मन के समत्व में बल तथा स्फूर्ति, मन व वृत्ति के समत्व में सुख, वृत्ति व चित्त के समत्व में शांति, चित्त व बुद्धि के समत्व में संतोष, बुद्धि व आत्मा के समत्व में आनंद आत्मा तथा व्यापक सत्ता में नित्य समत्व है ही । इसीलिए परमानन्द सहज अनुभूति व प्रमाण है ।
श्र परमानन्द सहज अनुभूति ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य है । परमानन्द सह-अस्तितव में अनुभव सहज वैभव है । यह जागृत जीवन में सहज क्रिया और अभिव्यक्ति है ।
जीवन सहज 122 क्रियाओं की परिभाषा
श्र आत्मा सहज दो क्रियाएँ - अनुभव व प्रामाणिकता रूपी दो क्रियाकलाप ।
अस्तित्व सहज परमानंद सहज
अनुभव प्रामामिकता
अस्तित्व :- सत्ता में संपृक्त प्रकृति के रूप में नित्य वर्तमान ।
परमानंद :- अनुभव संपन्न अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन ।
श्र बुद्धि सहज चार क्रियाएँ :- बोध एवं संकल्प रूपी चार क्रियाकलाप ।
आनन्द :- अंतविहीन (बिना रूकावट) उत्सव क्रि या, नित्य उत्सव क्रिया ।
धी :- उत्सवशीलता का प्रवर्तन क्रिया (परावर्तन के लिए तत्परता) ।
जागृति सहज स्थिति और गति की स्वीकृति क्रिया परमता ही आनंद और धी है ।
अस्तित्व :- स्थिति, गति, विकास, जागृति और वर्तमान सहज निर्भ्रम स्वीकृति -
1. जानना, मानना, स्वीकार करना
2. सहअस्तित्व ।
धृति :- सहअस्तित्व सहज सत्य में निष्ठा और परावर्तित करने केलिए प्रवृति ।
सत्य बोध सहज परावर्तन में निष्ठा ।
भय का अभाव वर्तमान में विश्वास ही धृति है ।
श्र चित्त सहज सोलह क्रियाएँ :- चिंतन व चित्रण रूपी सोलह क्रिया कलाप :-
श्रुति, स्मृति