व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र मानव जागृति में चैतन्य पक्ष का संस्कार और शरीर और जीवन के संयुक्त रूप में संस्कृति एवं सभ्यता में ही गण्य है । यह मानव परंपरा में प्रमाणित होता है ।

:: संस्कृति :- पूर्णता के अर्थ में कार्य-व्यवहार । क्रियापूर्णता एवं आचरण पूर्णता के अर्थ में किया गया कृतियाँ ।

:- अखंड समाज के अर्थ में कृतियाँ ।

:- जागृत व्यक्ति या व्यक्तियों की अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन ।

:: सभ्यता :- सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में प्रमाणित होना । यही सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में अभिव्यक्ति है ।

:- मानवीयतापूर्ण व्यवहार की सभ्यता संज्ञा है ।

श्र चैतन्य पक्ष में जागृति ही संस्कार है । यह सुसंस्कार है एवं जीव चेतना वश भ्रम ही कुसंस्कार है ।

:: सुसंस्कार :- मानवीयतापूर्ण मानव द्वारा अखंड समाज में, से, के लिए किया गया आवश्यकीय कार्य और आचरण सुसंस्कार है ।

श्र समाज की अखंडता, मानवीयता पूर्ण आचरण पर निर्भर करती है ।

ज्ञ मानवीयता की प्रतिष्ठा व्यक्ति के संस्कार, समाज की संस्कृति एवं सभ्यता तथा समाज गठन के मूल में पाई जाने वाली विधि एवं व्यवस्था पर निर्भर करती है ।

ज्ञ मानवीयता तथा अतिमानवीयता से सम्पन्न होने के लिए सहअस्तित्व में संकल्प, इच्छा व विचार का परिष्कृत होना आवश्यक है, जो सुसंस्कार ही है ।

ज्ञ सुसंस्कार के लिये वातावरण एवं अध्ययन ही प्रधान कारण है एवं सहायक भी है । इसकोे सुरक्षित तथा परिमार्जित करने का दायित्व मनीषियों पर निर्भर है । न्यायपूर्ण व्यवहार तथा अखण्ड सामाजिकता की प्रेरणा सुसंस्कारों के वर्धन में सहायक है ।

श्र न्यायपूर्ण व्यवहार पक्ष, समाधान पूर्ण विचार पक्ष तथा सत्यानुभूति पूर्ण अनुभव पक्ष को भाषा द्वारा बोधगम्य, ज्ञानगम्य तथा व्यवहारगम्य बनाने का प्रयास अनुभवशील मानव अथवा जागृति सहज वृत्ति संपन्न व्यक्ति द्वारा किया जाता है ।

:: सहजता :- व्यवहार, विचार एवं अनुभव की एकसूत्रता ही सहजता है ।

:: सहज-वृत्ति :- सहजता प्राप्त मनीषियों की वृत्ति को ही ‘सहज-वृत्ति’ की संज्ञा है ।

:: न्यायपूर्ण व्यवहार :- सत्य सहज भास, संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, उभयतृप्ति ।