व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
:: शोषण ः- भ्रमवश किया गया कार्य-व्यवहार ।
:: पोषण :- मानवीयता, अतिमानवीयता सहज परंपरा ।
:: अनुचित :- समय, परिस्थिति तथा घटनाओं के संदर्भ में मानवीयता या अतिमानवीयता का शोषण, विरोध ।
:: उचित :- समय, परिस्थिति तथा घटनाओं के अनुसार मानवीयता या अतिमानवीयता का पोषण ।
:: लाभ :- कम वस्तु व सेवा के बदले में अधिक वस्तु व सेवा का पाना ।
:: हानि :- अधिक वस्तु व सेवा के बदले में कम वस्तु व सेवा का पाना ।
:: न्याय :- मानवीयता के पोषण के लिए संपादित क्रियाकलाप व व्यवहार । संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, उभयतृप्ति ही न्याय है ।
:: अन्याय :- मानवीयता के विपरीत शोषण के लिए किया गया क्रियाकलाप व व्यवहार तथा अमानवीयतावश क्रियाकलाप व व्यवहार ही अन्याय है ।
:: पुण्य :- मानवीयता तथा अतिमानवीयतापूर्ण व्यवहार ।
:: पाप :- अमानवीयतावादी व्यवहार ।
:: विधि :- सामाजिकता, मानवीयता, अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था की संरक्षण पोषणवादी नीति, कार्य व्यवहार ।
:: निषेध :- सामाजिकता की शोषणवादी नीति, अमानवीय कार्य व्यवहार । जीव चेतनावश किया गया समस्त कार्य व्यवहार विचार ।
:: कर्त्तव्य :- प्रत्येक स्तर पर प्राप्त संबंध एवं संपर्क के मध्य निहित मानवीयतापूर्ण आशा व प्रत्याशा पूर्वक व्यवहार । संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह ।
:: अकर्त्तव्य :- प्रत्येक स्तर पर प्राप्त संबंध एवं संपर्क के मध्य निहित मानवीयतापूर्ण आशा व प्रत्याशा का निर्वाह न करने के स्थान पर अमानवीयतावादी आचरण अकर्तृत्व है ।
:: समाधान :- प्रत्येक क्रिया के लिए परिशिष्ट एवं परिमार्जित पद्धति के अनुसरण में स्थिति सत्य वस्तुगत सत्य एवं वस्तुस्थिति का ज्ञान तथा सही, क्यों, कैसे का उत्तर, समाधान ।
:: समस्या :- पशुमानव, राक्षस मानव का कार्य व्यवहार । समाधान के विपरीत में समस्या ।
:: आवश्यक :- मानवीयता तथा अतिमानवीयता की ओर प्रगति ।