व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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(5) अनेक जाति, वर्ग, मत, सम्प्रदायों एवम् पक्षात्मक विचारों से मुक्त समाधान पूर्ण मानवीयता सहज अखण्ड समाज नीति का विकास करना ।

(6) स्वधन, स्वनारी/स्व पुरुष, दया पूर्ण कार्य-व्यवहार को स्थापित करने वाली नीति का विकास करना ।

(7) हर परिवार में समाधान, समृद्धि सहज आधार पर अमीरी-गरीबी का असंतुलन समाप्त करना ।

(8) व्यवस्था के अंतर्गत हर आयुवर्ग के नर-नारियों को न्याय सुलभ कराने वाली पद्धति का विकास करना ।

ज्ञ समस्त अर्थ नीति द्वारा मानवीयता पूर्ण दृष्टि, स्वभाव व विषय को लक्ष्य में रखते हुए समस्त संपर्क तथा संबंधों का निर्वाह करने में व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक को समृद्धि होने की पूर्ण संभावना होनी चाहिये, जिसका मूर्त रूप अधिक उत्पादन व कम उपभोग पूर्वक स्वधन, स्व-नारी/स्व-पुरुष एवं दया पूर्ण क्रियाओं में निष्ठा एवं परधन, पर-नारी/परपुरुष एवं पर-पीड़ात्मक क्रियाओं का निराकरण ही है, क्योंकि अंततोगत्वा समस्त संपर्क एवं संबंध और स्वत्व का साकार व्यवहार्य रूप स्वधन, स्व-नारी/स्वपुरुष और दया पूर्ण कार्य व्यवहार ही है ।

★ 3. उत्पादन सुरक्षा ः- प्रत्येक व्यक्ति के श्रम और तकनीक का पूर्ण सदुपयोग करते हुए अर्थ के उत्पादन की दिशा में किये गये प्रयास की उत्पादन संज्ञा है । प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता एवं कला मूल्य को स्थापित करना ही उत्पादन है ।

:: प्राप्त श्रम अर्थात् निपुणता, कुशलता, पाण्डित्य का सदुपयोग ही अर्थ सुरक्षा है ।

ज्ञ मानव के लिये आवश्यकीय उत्पादन मुख्यत: दो ही हैंं - 1. कृषि और 2. उद्योग । अन्य जितने भी व्यवसाय हैं, वह इनके आश्रय में तथा इनके पूरक सिद्ध होते हैं ।

ज्ञ उत्पादन की सुरक्षा के लिये व्यवस्था को निम्न तथ्यों के आधार पर नीति निर्धारण करना चाहिये ।

(1) निपुणता एवं कुशलता को वरीयता प्रदान करना ।

(2) निपुण एवं कुशल व्यक्ति को साधन उपलब्ध कराना ।

(3) मानव उपयोगी वस्तुओं यथा आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरश्रवण तथा दूरदूर्शन के लिये वस्तुओं तथा उपकरणों पर प्रयोग तथा प्रयास को सहायता देने वाली नीति का विकास करना ।

(4) अधिकाधिक उत्पादन व व्यक्तित्व सम्पन्न करने वाली, निपुणता तथा कुशलता का समझदारी के साथ सामान्यीकरण करने वाली नीति का विकास करना ।