व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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निर्विरोधिता) का प्रमाण विरोध) दूसरे का नाश, शोषण से स्वरक्षा की स्वीकृति

श्र विद्या (सहअस्तित्व पूर्ण समझ) श्र अविद्या (संशयात्मक एवम् संशय एवं विपर्यय से मुक्त जानकारी, विपर्ययात्मक प्रवृत्ति ) समझ अधिमूल्यन, अवमूल्यन, निर्मूल्यन प्रवृत्ति ।

श्र सरलता (दिखावा रहित स्पष्टता) श्र अभिमान (दिखावा पूर्ण जीवन,

जीवन व अन्यों में गुरु मूल्यन मूल्यांकन अपने में अधिमूल्यन)

श्र अभय (विवेक) समाधान का प्रमाण श्र भय (अविवेक)

सामाजिक क्षेत्र

श्र स्वधन - प्रतिफल पारितोष पुरस्कार श्र परधन (शोषण एवं पाखण्ड

सम्पन्नता का प्रमाण पूर्वक प्राप्त धन)

श्र स्व-नारी या स्व-पुरुष, श्र पर-नारी या पर-पुरुष

(सामाजिक निर्णय अनुसार प्रमाण) (सामाजिक निर्णय के प्रतिकूल)

श्र दयापूर्ण कार्य व्यवहार दया (जीने देना) श्र पर-पीड़ा (दूसरों के जीवन में

पात्रता के अनुसार वस्तु सुलभता का प्रमाण हस्तक्षेप)

प्राकृतिक क्षेत्र

★ प्राकृतिक सम्पत्ति खनिज वन का ★ प्राकृतिक सम्पत्ति का उत्पादन

उनके उत्पादन के अनुपात में व्यय से अधिक व्यय (अतिरिक्त

प्रमाण व्यय)

★ प्राकृतिक सम्पत्ति के संतुलन में ★ उत्पादन में अनानुपातीय दोहन पूरक होने का प्रमाण व प्राकृतिक वैभव में हस्तक्षेप एवं शोषण (धरती क्षतिग्रस्त)

★ प्राकृतिक वैभव में आवर्तनशीलता ★ प्राकृतिक आवर्तनशीलता में को बनाये रखना बाधा उत्पन्न करना । अनावर्तिय द्रव्यों का शोषण करना ।

:: उपरोक्तानुसार विधि एवम् निषेध को मूल आधार स्वीकार कर समस्त अर्थ-तन, मन एवम् धन की सुरक्षा की नीति निर्धारित होना स्वाभाविक है ।