व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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आवश्यकता

श्र मानव प्रयोग व व्यवसाय द्वारा प्राप्त अर्थ तथा प्राकृतिक सम्पदा की सुरक्षा की कामना करता है, क्योंकि उसमें उसका श्रम नियोजित एवम् प्रयोजित है । ऐसा सुरक्षा के लिये राज्य-नीति का अध्ययन व समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी का परिपालन आवश्यक है ।

लक्ष्य अथवा साध्य

श्र राज्य नीति का लक्ष्य अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था की अक्षुण्णता है ।

श्र अमानवीयता से मानवीयता की ओर प्रगति हेतु मार्ग प्रशस्त करने के लिए साधन, अवसर तथा व्यवस्था की स्थापना एवम् सुरक्षा जो अतिमानवीयता को प्रोत्साहन देने में समर्थ हो ।

ज्ञ राज्यनीति सहज लक्ष्य को सार्थक और सर्वजन सुलभ बनाने की कामना से समझदारी की आवश्यकता है । समझदारी सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, चैतन्य प्रकृति रूपी जीवन ज्ञान और मानवीयता रूपी आचरण ज्ञान ही संपूर्ण ज्ञान है । हर नर-नारी इसका ज्ञाता कर्ता-भोक्ता होने के योग्य ही है । इसे एक से अनेक मानव तक बोधगम्य, अनुभव गम्य रूप में प्रमाणित होना आवश्यक है । यही एक मात्र उपलब्धि अथवा जागृति ही संपूर्ण भ्रम को दूर करने के लिए पर्याप्त है ।

ज्ञ जागृत मानव परंपरा मे ं राज्य का स्वरूप अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था सूत्र अध्ययन से और आचरण से व्याख्या होने के आधार पर विधि को पहचानने के मुख्य रूप से पाँच मुद्दे पाये गये हैं । यह - (1) मानवीय शिक्षा-संस्कार (2) न्याय-सुरक्षा (3) उत्पादन कार्य (4) विनिमय-कोष (5) स्वास्थ्य-सयंम के रूप में गण्य हैंं ।

राज्य प्रक्रिया में उक्त पाँचों व्यवस्थाएं सार्वभौमिकता के अर्थ मेें ही सार्थक होना पाया जाता है । मानवीय शिक्षा-संस्कार की सफलता अर्थ बोध होने के रूप मेें है । न्याय-सुरक्षा की सफलता संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन पूर्वक उभय तृप्ति के रूप मेें सार्थक होना पाया जाता है । उत्पादन-कार्य हर परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन के रूप में, समृद्धि के अर्थ में सार्थक होना पाया जाता है । विनिमय-कोष श्रम मूल्य के पहचान सहित, श्रम विनिमय पद्धति से सार्थक होता है । और स्वास्थ्य-संयम मानव परंपरा में जीवन जागृति को प्रमाणित करने योग्य शरीर की स्थिति-गति के रूप में सार्थक होता है । यह सब मानव सहज जागृति के अक्षुण्णता का द्योतक है अथवा सार्वभौम व्यवस्था, अखंड समाज और उसकी अक्षुण्णता का द्योतक है । यही राज्य वैभव का स्वरूप है । इस विधि से हर परिवार समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना होता है ।

श्र यदि समस्या है तो समाधान है ही । समाधान के आधार पर निश्चितता को पाना अनिवार्य है ।

श्र कोई भी मानव अनिश्चित विधि व व्यवस्था नहीं चाहता । विधि एवम् व्यवस्था के प्रति विश्वास एवम् निष्ठा की निरन्तरता के लिये सार्वभौम विधि व्यवस्था आवश्यक है ।