व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

Back to Books
Page 115

श्र राष्ट्रीय स्तर पर राज्य-नीति निम्न छः दृष्टिकोण से निर्धारित की जानी चाहिए तथा उसका लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए । इन बिन्दुओं के आधार पर मानव के सहअस्तित्व, जागृति तथा समृद्धि की दृष्टि से व्यवस्था तथा स्वानुशासन का सामान्यीकरण महत्वपूर्ण सिद्ध होता है ।

★ 1. राष्ट्रीय सुरक्षा, सहअस्तित्व सिद्धान्त से ।

★ 2. आर्थिक सुरक्षा, परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन सिद्धान्त आवर्तनशील विधि से ।

★ 3. उत्पादन सुरक्षा, प्राकृतिक सन्तुलन को बनाये रखने के सिद्धान्त से ।

★ 4. विनिमय सुरक्षा, श्रम नियोजन व विनिमय सिद्धान्त से ।

★ 5. विद्याध्ययन संस्कार सुरक्षा, सहअस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिन्तन ज्ञान विधि से ।

★ 6. नैतिक सुरक्षा, तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग सुरक्षा से ।

★ 1. राष्ट्रीय सुरक्षा ः- राष्ट्रीय जन-जाति (राष्ट्र में रहने वाले मानव) में राष्ट्रीय स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार धारणा एवम् निष्ठा को सुरक्षित रखना । राष्ट्रीय सुरक्षात्मक नीति अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सहज है । जिससे राष्ट्रान्तर्गत व्यक्ति, परिवार तथा समाज को सुरक्षा का अनुभव हो सके और प्रत्येक व्यक्ति भय से रहित होकर व्यवस्था, व्यवसाय एवं व्यवहार में रत हो सके, जिससे समाधान समृद्धि-पूर्ण जीवन का अनुभव कर सकने का अवसर उपलब्ध हो । स्पष्ट है कि ऐसी नीति मात्र मानवीय दृष्टि को लक्ष्य में रखकर ही निर्धारित की जा सकती है, साथ ही ऐसी नीति में अन्य राष्ट्रों के शोषण की कोई संभावना न होने से परस्पर सहअस्तित्व के लिये विश्वास के आधार का निर्माण होगा ।

★ 2. आर्थिक सुरक्षा ः- राष्ट्रीय अर्थ सुरक्षा का नीति निर्धारण निम्न बिन्दुओं के आधार पर किया जाना चाहिये ः-

(1) व्यवस्था द्वारा सभी व्यक्तियों में उनकी क्षमता, पात्रता एवम् योग्यता के आधार पर उत्पादन कार्य में प्रवृत होने वाली नीति का विकास । इसका स्पष्ट स्वरूप परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन से है एवं समाधान-समृद्धि हर परिवार में प्रमाणित होने से है ।

(2) परिवार समृद्धि के लिये प्रोत्साहन देना तथा तदनुरूप साधन सुलभता करने की नीति को अपनाना ।

(3) जागृति सहज क्षमता, योग्यता एवम् पात्रता के आधार पर सम्मान व गौरव प्रदान करना ।

(4) उत्पादन हेतु अधिकतम श्रम व साधन व्यय करने हेतु प्रोत्साहन देने वाली नीति का विकास करना ।