व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र अमानवीयता से मानवीयता की ओर गुणात्मक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करने हेतु समाधान, साधन, अवसर तथा व्यवस्था उपलब्ध कराना, जो अतिमानवीयता के लिये प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन देने में समर्थ हो ।
श्र प्रत्येक मानव में साध्य को पाने हेतु तीन बातों का होना अनिवार्य :-
श्र 1. साधक, 2. साधना, 3. साधन ।
1. साधक : प्रत्येक मानव को ‘साधक’ की संज्ञा है, वह क्रम से व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र तथा अंतर्राष्ट्रीय भेद से है ।
2. साधना : तन, मन तथा धन सहित मानवीय दृष्टि, विषय एवं स्वभाव सहित साध्य (मानवीयता एवं अतिमानवीयता) को पाने हेतु प्रयुक्त क्रिया प्रणाली को ‘साधना’ की संज्ञा है ।
3. साधन : तन, मन व धन ही साधन है । सर्वमानव के लिए जागृति ही साध्य है ।
श्र साधन की प्रयुक्ति कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित एवं अनुमोदित भेद से कुल नौ प्रकार की होती है । इन समस्त साधनों को तीन क्षेत्रों में ही प्रयुक्त किया जा रहा है ः-
(1) प्राकृतिक क्षेत्र (2) सांस्कृतिक क्षेत्र (3) बौद्धिक क्षेत्र ।
★ सहअस्तित्व व सामाजिकता का अध्ययन व्यक्ति के जागृति एवं व्यवहार के संदर्भ में ही है ।
★ मानव धर्मनीति का अध्ययन अपेक्षाकृत ढंग से ही संभव है वह है अतिमानवीयता की अपेक्षा में मानवीयता का अध्ययन तथा अतिमानवीयता एवं मानवीयता की अपेक्षा में अमानवीयता की समीक्षा । यह सहअस्तित्व, सामाजिकता, समृद्धि, समाधान, संतुलन, सच्चरित्रता एवं सुख, शांति, संतोष, आनन्द के उद्देश्य से किया जाता है और यही मानव की आद्यान्त आकांक्षा है ।
★ अखंड समाज समझदारी सहित समझदार व्यक्तियों के उद्देश्यपूर्ण आचरण संहिता समेत व्यवस्था प्रणाली ही है । अखंड समाज में व्यक्ति संपर्क एवं संबंध द्वारा जुड़ा हुआ है ।
श्र मानव समाज में परस्पर निम्न संबंध दृष्टिगोचर होता है ः-
1. पिता-माता एवं पुत्र-पुत्री संबंध,
2. पति-पत्नी संबंध,
3. गुरु और शिष्य संबंध,
4. भाई और बहिन संबंध,
5. साथी-सहयोगी संबंध,