व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
★ वातावरण के दबाव से मुक्त होने के लिए शोषण से मुक्ति आवश्यक है, जो सहअस्तित्व में अनुभवपूर्वक सर्वतोमुखी समाधान से ही मानव में प्रमाणित है ।
★ मध्यस्थ दर्शन, सहअस्तित्ववाद के प्रकाश में संपूर्ण मानव समाज के लिए समन्वित धर्मनीति तथा राज्यनीति निम्न आधारभूत सिद्धांतों की सहायता से की गयी है ।
श्र 1. भूमि एक (अखण्ड राष्ट्र) राज्य अनेक
2. मानव जाति एक कर्म अनेक
3. मानव धर्म एक समाधान अनेक
4. सत्ता (व्यापक रूप में) देवता अनेक
श्र उक्त चार सिद्धांतों से एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्वयंसिद्ध सूत्र की निष्पत्ति होती है, वह है :-
श्र मानव जाति सही में एक तथा भ्रमवश गलती में अनेक है । अनेक (परस्पर विरोध) होने का कारण रहस्य और उपभोक्तावाद ही है । जागृति पूर्वक सभी अनेक परस्पर पूरकता, उपयोगिता विधि से एक हो जाते हैं ।
मानव धर्म-नीति
परिभाषा
अर्थ की सदुपयोगात्मक नीति ही धर्मनीति है ।
:: मानव की सार्वभौमिक साम्य कामना सुख की अनुभूति हेतु मानव के समस्त सम्पर्क एवं संबंध के निर्वाह के लिए समाधान, समृद्धि, अभय व सहअस्तित्व सहज प्रमाण प्रस्तुत करने हेतु निश्चित कार्यक्रम कीे ‘मानव धर्म नीति’ की संज्ञा है ।
आवश्यकता
श्र मानव धर्मनीति सहज समझ तथा परिपालन इसलिए आवश्यक है कि मानव प्रयोग एवं उत्पादन द्वारा प्राप्त अर्थ तथा प्राप्त प्राकृतिक संपदा के सदुपयोग की कामना करता है ।
★ धर्मनीति का अध्ययन मानव के परस्परता में पाये जाने वाले सम्पर्क एवं संबंध का अध्ययन है क्योंकि मानव संपर्क एवं संबंध से सुखी अथवा दुःखी हो रहा है न कि वस्तु, वाहन आदि से ।
लक्ष्य अथवा साध्य