व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
ही प्रबल होता है । संबंधों मे भाव का निर्धारण मानवीय परम्परा के अनुसार है । संबंधों के निर्वाह में भाव पक्ष का तिरस्कार कर भौतक पक्ष को वरीयता प्रदान कर जब आचरण किया जाता है तो अपने से अविकसित को विकास का लक्ष्य मान लेने की भ्रमित मान्यता का जन्म होता है जबकि समस्त भौतिक पक्ष मनुष्य से अविकसित है ही । इसलिए विकास का मार्ग अवरूद्ध होता है । परिणाामतः मानवों ने भौतिक उपलब्धियों के लिए ही युद्ध किया है ।
श्र किसी भी उपलब्धि के प्रति आवश्यकीय नियम सहित पूर्ण समझ की ‘निश्चय’ तथा अपूर्ण समझ से किए गए प्रयास की ‘मान्यता’ संज्ञा है ।
★ अत: संबंध में भाव पक्ष का तिरस्कार ही उस संबंध का शोषण है ।
श्र मानव के लिए पोषण युक्त संपर्कात्मक एवं संबंधात्मक विचार एवं तदनुसार व्यवहार से ही मानवीयता की स्थापना संभव है, अन्यथा, शोषण और अमानवीयता की पीड़ा है ।
★ शोषण और पोषण तीन प्रकार से होता है ।
★ दायित्व का निर्वाह करने से पोषण अन्यथा शोषण है । प्राप्त दायित्वों में नियोजित होने वाली सेवा के नियोजित न करते हुए मात्र स्वार्थ के लिए जो प्रयत्न है एवं दायित्व के अस्वीकारने की जो प्रवृति है उसको दायित्व का निर्वाह न करना कहते हैं ।
★ दायित्व को निर्वाह न करने पर स्वयं का विकास, जिसके साथ निर्वाह करना है उसका विकास तथा इन दोनों के विकास से जिन तीसरे पक्ष का विकास हो सकता है वह सभी अवरूद्ध हो जाते हैं । विकास को अवरूद्ध करना ही शोषण है ।
★ दायित्व का अपव्यय अथवा सद्व्यय करना -दायित्व के निर्वाह में आलस्य एवं प्रमाद पूर्वक प्राप्त प्रतिभा और वर्चस्व का न्यून मूल्य में उपयोग करना ही दायित्व का अपव्यय है ।
★ दायित्व का विरोध करना अथवा पालन करना - मौलिक मान्यताएं जो संबंध एवं सम्पर्क में निहित है उसके विरोध में ह्रास के योग्य मान्यता को प्रचारित एवं प्रोत्साहित करना ही दायित्व का विरोध करना है । दायित्वों का विरोध अभिमान वश एवं अज्ञानवश किया जाता है ।
★ प्रत्येक इकाई के मूल में तीन बातेें मुख्य होती हैंं ः-
(1) गठन (2) उद्देश्य और (3) आचरण (कार्यक्रम) की विशिष्टता । यहाँ चूंकि व्यक्ति से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मानव समाज की इकाई के संदर्भ में शोषण एवं पोषण की विवेचना है अत: हम उपरोक्त चर्चा के उपरांत इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैंं कि विभिन्न इकाईयों के गठन, उद्देश्य और आचरण (कार्यक्रम) की विशेषता निम्नानुसार होने पर ही संपूर्ण मानव समाज एकसूत्रता में होकर, शोषण मुक्त हो सकेगा ।
इकाई गठन की विशिष्टता गठन का उद्देश्य आशित आचरण
मानव विचार एवं शरीर सुखानुभूति न्यायसम्मत व्यवहार