व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
परिवार सीमित समझदार व्यक्तियों समाधान एवं समृद्धि समाधान सहित सेवा,
के समूह का संबंध प्रधान व्यवसाय एवं प्रयोग
गठन
समाज सीमित परिवारों का समूह, समृद्धि सहित सत्यता जागृति में, से, के लिए
जिसमें संबंध एवं संपर्क एवं अखण्ड सामाजिकता प्रचार एवं प्रदर्शन, प्रकाशन
दोनों सम्मिलित हों । को आत्मसात करना, तथा प्रोत्साहन । शिक्षा-
अर्थ का सदुपयोग- संस्कार विधि से लोक- सुरक्षा व्यापीकरण
राष्ट्र राष्ट्रव्यापी जनजाति के समूह मानवीयता का संरक्षण न्याय पूर्ण व्यवस्था । का गठन एवं सम्पर्क के निर्वाह प्रत्यक्ष रूप में अर्थ की
के लिए विधि की सुरक्षा ।
प्रधानता ।
विश्व कई राज्यों का समूह जिसके मानवीयता को सहअस्तित्व में, से, के मूल गठन में मानवीयता प्रोत्साहन । लिए ।
प्रधान संयोजक तत्व है
सार्वभौम व्यवस्था के
अर्थ में
★ उपरोक्त वर्णित उद्देश्य अर्थात् तन, मन और धन के सदुपयोग और तन, मन और धन की सुरक्षा की पूर्ति के लिए तथा तदनुकूल आचरण को व्यवहार में लाने हेतु और तदनुसार विभिन्न स्तरों के गठन की संपर्कात्मक तथा संबंधात्मक परस्परता को विश्वासपूर्वक सुदृढ़ करने के लिये एक समन्वित धर्मनीति तथा राज्य नीति आवश्यक है, जिससे एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को स्थापित तथा विकसित किया जा सके, जो मानव के जागृति की संपूर्ण संभावनाओं से युक्त हो । ऐसी व्यवस्था मात्र पोषण-प्रधान गुणों व नीतियों से ही संपन्न होगी, जो जागृति का मार्ग प्रशस्त करेगी, जिससे मानव सुखी रहेगा ।
★ उपरोक्तानुसार धर्मनीति तथा राज्यनीति के व्यवहारान्वयन में सहायक सभी विचार तथा व्यवहार पोषक, अन्यथा में शोषक ही सिद्ध होंगे ।