व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र इसकी भिन्न पद्धति से भी नीति निर्धारण होता है, जिससे कि मानव समाज के लिये व्यक्ति की महत्ता तथा व्यक्ति के लिए मानव समाज की महत्ता प्रतिपादित होती है । इसके साथ ही व्यक्ति से लेकर संपूर्ण मानव समाज की एकसूत्रता का महत्व भी हृदयंगम होता है ।

श्र जागृति विधि से अंतर्राष्ट्रीय नीति में अखंडता व सार्वभौमता की नीति, राष्ट्रीय नीति में विधि (न्याय) की अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए व्यवस्था, सामाजिक नीति में स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष तथा दया पूर्ण कार्य-व्यवहार की नीति और व्यक्तिगत जीवन में समझदारी संपन्न नीति से ही पोषण संभव है ।

★ संबंध एवं सम्पर्क के विषय में एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक है । इन दोनों में दायित्व का निर्वाह आदान प्रदान के आधार पर होता है परन्तु दोनों में भेद यह है कि संबंध की परस्परता में प्रत्याशाएं पूर्व निश्चित रहती है तथा इसके अनुरूप ही आदान प्रदान होता है । सम्पर्क में आदान एवं प्रदान परस्परता में पूर्व निश्चित नहीं रहता । इसलिए सम्पर्क में आदान व प्रदान क्रियाएं ऐच्छिक रूप में अवस्थित है । संबंध दायित्व प्रधान एवं सम्पर्क कर्तव्य प्रधान है । सम्पर्क में परस्परता में स्वधन, स्वनारी/स्वपुरुष दयापूर्ण कार्य व्यवहार की अपेक्षा रहती ही है । मानव अथवा इससे विकसित तक ही संबंध है जबकि समस्त इकाईयाँ परस्पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्पर्क में है ही ।

श्र संपूर्ण संपर्क, संबंध के लिए प्रेरणा के श्रोत हैं । संपर्क दो प्रकार के होते हैं-

(1) प्राकृतिक संपर्क (2) मानव संपर्क ।

★ प्राकृतिक संपर्क में जागृत मानव प्राकृतिक ऐश्वर्य का उपयोग व सदुपयोग करता है । समस्त भौतिक संपर्क तथा इसकी उपलब्धियाँ संबंध के निर्वाह के लिए ही होती है । मानव संपर्क से अपने विकास के लिए प्रेरणा पाता है अथवा उसके लिए प्रवृत्त होता है ।

★ मानव संपर्क जो जागृति के लिये प्रेरणा देता है पोषण है ।

श्र जो जिसका मूल्यांकन नहें करेगा वह उसका सदुपयोग नहीं करेगा या नहीं कर सकेगा । अत: मानव के हर पक्ष का मूल्यांकन आवश्यक है ।

★ सम्पूर्ण संबंधों के मूल में मूल्यांकन आवश्यक है । मूल्यांकन मौलिकता का ही होता है । मौलिकता के आधार पर ही कर्तव्य का निर्धारण तथा निर्वाह होता है । दायित्वों का निर्वाह जिस इकाई के प्रति होना है उस इकाई के प्रति न होने से उसका पोषण अवरूद्ध होता है अथवा शोषण है साथ ही जिस इकाई द्वारा दायित्व का निर्वाह होना है उसे, न होने की स्थिति में प्रतिफल के रूप में अविश्वास ही मिलेगा । अविश्वास ही द्रोह, विद्रोह तथा आतंक का कारण बनता है जो शोषण की ओर प्रेरित करता है ।

★ प्रत्येक संबंध में सम्पर्क निहित है ही । संबंध में भाव (मौलिकता) पक्ष विशिष्ट है तथा भौतिक पक्ष गौण है । प्रत्येक संबंध में भाव का जितना तिरस्कार होता है भौतिक पक्ष उतना