व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

Back to Books
Page 10

श्र मणि का वर्गीकरण किरण श्रावी एवं किरण ग्राही भेद से है ।

:: किरण :- तप्त बिम्ब का प्रतिबिंबन अपारदर्शक वस्तु पर होना ही किरण है । इकाई से बहिर्निहित अग्नि को ताप संज्ञा है ।

:: किरण स्रावी :- किरण के प्रभाव से प्रसारण क्रिया करने वाले मणि को किरण स्रावी तथा ग्रहण करने वाले को किरण ग्राही संज्ञा है ।

★ पारदर्शक एवं अपारदर्शक भेद से विकिरण और किरण क्रिया में रत है ।

:: विकिरण :- किसी इकाई में अंतर्निहित अग्नि के प्रभाव से प्राप्त प्रसारण को विकिरण संज्ञा है ।

:: रश्मि :- तप्त बिम्ब (प्रकाश के) प्रतिबिम्ब, अनुबिम्ब, प्रत्यानुबिम्ब क्रिया की रश्मि संज्ञा है ।

:: प्रकाश :- इकाई के प्रतिबिम्बन की प्रकाश संज्ञा है ।

★ विकिरण एवं किरण माध्यम भेद से शोषण या पोषण क्रिया में रत है । प्राकृतिक विधि से पोषण स्पष्ट हो चुका है । भ्रमित मानव द्वारा विकिरणीय प्रयोग से शोषण सिद्ध हो चुका है ।

★ पदार्थ राशि के संगठित पिण्ड की ग्रह-गोल संज्ञा है जिसके सभी ओर आकाश है ।

श्र प्रत्येक ग्रह आकाश में शून्याकर्षण की स्थिति में है । ऐसी हर इकाई अर्थात् ग्रह-गोल आकाश में अपनी गति के अनुसार स्थिति है ।

इकाईयाँ धनाकर्षण की स्थिति में किसी की ओर आकर्षित तथा ऋण-आकर्षण की स्थिति में किसी को आकर्षित करती है तथा शून्याकर्षण की स्थिति में स्वतंत्र है ।

श्र भार, आकर्षण से; आकर्षण, परस्परता से; परस्परता, लघुता एवं गुरुता से; लघुत्व एवं गुरुत्व, रचना एवं सापेक्ष ऊर्जाओं से; रचना एवं सापेक्ष ऊर्जा, क्रिया से; क्रिया, पदार्थ से और पदार्थ का ह्रास एवं विकास सापेक्ष ऊर्जा के सदुपयोग एवं दुरूपयोग से सापेक्षित है ।

श्र समस्त पदार्थ निरपेक्ष ऊर्जा में संपृक्त व समाहित हैं तथा संपूर्ण सृष्टि की स्थिति तथा गति निरपेक्ष ऊर्जा में है ।

श्र प्रत्येक चेष्टा से सापेक्ष ऊर्जा का प्रसव है ।

श्र मूल चेष्टा के लिए निरपेक्ष ऊर्जा सबको प्राप्त है ही ।

:: मूल चेष्टा :- पदार्थ के परमाण्विक स्थिति में वातावरण के दबाव से मुक्त चेष्टा की मूल चेष्टा संज्ञा है ।