व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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:: तात्विक:- सजातीय परमाण्विक समूह के गठन की तात्विक संज्ञा है ।

:: मिश्रण :- विजातीय परमाण्विक अथवा आण्विक समूह का ऐसा गठन जिसमें सभी अपने-अपने आचरण को बनाये रखते हैं ।

:: यौगिक:- दो या अधिक प्रजाति की वस्तुयें निश्चित अनुपात से मिलकर, अपने-अपने आचरण को त्याग कर, अन्य प्रकार के आचरण को प्रस्तुत करते हैं ।

ज्ञ यौगिक में रासायनिक तथा भौतिक दोनों परिणाम होते हैं, जबकि मिश्रण में केवल भौतिक परिणाम होते हैं ।

श्र परमाणुओं के मध्यांश एवं आश्रित कणों के संख्या भेद से परमाणुओं की जाति एवं अवस्था और मात्रा का निर्णय होता है ।

:: वायु ः- विरल पदार्थ राशि के नृत्य (तरंग) रूप में गतिशीलता वायु है । जिनके योग से द्रव एवं ताप का प्रसव है ।

श्र योग :- मिलन को योग संज्ञा है । योग के दो भेद हैं ।

1. ऐक्य, 2. सहवास

:: ऐक्य :- सजातीय मिलन की ऐक्य संज्ञा है ।

:: सहवास :- जिस योग के अनन्तर विलगीकरण संभव हो, उसकी सहवास संज्ञा है ।

★ सहवास के अनन्तर उन्नति की ओर प्राप्त सम्वेगों की प्रेरणा संज्ञा है तथा इसके विपरीत प्राप्त सम्वेगों की प्रतिक्रांति अथवा ह्रास संज्ञा है । धारणा के प्रतिकूल चेष्टा को अथवा समस्या की ओर प्राप्त विवशता की भी प्रतिक्रांति संज्ञा है ।

:: उन्नति :- गुरु मूल्यन की ओर अथवा समाधान की ओर प्रगति ही उन्नति है ।

:: सम्वेग :- संयोग से प्राप्त वेग ही सम्वेग है ।

:: धारणा :- जिससे जिसका विलगीकरण संभव न हो, वह उसकी धारणा है । जो चारों पदों में अपने-अपने स्थिति के अनुसार स्पष्ट है ।

:: समस्या :- किसी भी घटना अथवा क्रिया की समझ न होना ही समस्या है अथवा कैसे और क्यों समझ में न आना समस्या है ।

:: समाधान :- किसी भी घटना अथवा क्रिया के नियम की समझ होना ही समाधान है अथवा कैसे और क्यों की पूर्ति ही समाधान है ।