व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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:: गुरुमूल्यन :- दीर्घ कालीन परिणाम अथवा अपरिणामिता गुरुमूल्यन है ।

श्र सहवास में ही प्रेरणा का प्रसव और अनुभव है तथा इसके विपरीत विवशता को प्रतिक्रांति की समीक्षा है ।

श्र प्रेरणावादी सहवास से उभय सुकृतियाँ प्रतिक्रांतिवादी सहवास से उभयविकृतियाँ हैं ।

:: उभय सुकृतियाँ :- गुरुमूल्यन अथवा दीर्घ परिणाम या अपरिणामिता ।

:: उभय विकृतियाँ :- अवमूल्यन की ओर द्रुत परिणाम या ह्रास या समस्या की ओर द्रुत परिणाम ।

श्र सहवास ही सृष्टि (रचना) का मूल कारण है । सहवास सहअस्तित्व में अभिव्यक्ति है । सहअस्तित्व नित्य वर्तमान व नित्य प्रभावी है ।

ज्ञ संसार में अथवा अनंत संसार में ऐसी कोई इकाई नहीं है जो उत्थान या पतन की ओर गतित न हो क्योंकि गति रहित कोई इकाई नहीं है । अत: अनंत के लिये मात्र दो ही गतियाँ हैं ।

ज्ञ ठोस पदार्थ राशि के नृत्य (तरंग) मिश्रण एवं यौगिक विधियों से समस्त रस एवं उपरस का प्रसव है ।

श्र पदार्थ राशि का वर्गीकरण चार जातियों में है :

1. मृद् (मिट्टी), 2. पाषाण, 3. मणि और 4. धातु ।

श्र मृद् अथवा मिट्टी उर्वरा और अनुर्वरा भेद से है ।

:: उर्वरा :- बीज को पाकर अनेक बीज को तैयार करने वाली क्षमता से सम्पन्न मिट्टी की उर्वरा संज्ञा है तथा इससे विपरीत गुण स्वभाव वाली मिट्टी की‘अनुर्वरा’ संज्ञा है ।

श्र पाषाण का वर्गीकरण कठोर एवं अकठोर भेद से है ।

:: कठोर :- अधिक भार सहने वाले पाषाण की कठोर संज्ञा है ।

:: अकठोर ः- कम भार सहने वाले की अकठोर संज्ञा है ।