अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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और विश्व परिवार सभा से एक ग्राम परिवार सभा तक आवश्कतानुसार आदान-प्रदान गति को बनाए रखने के लिए यह सभी साधन उपयोगी, सदुपयोगी होना दिखाई पड़ती है। इसी नजरिया से ही यह निर्णय होता है संग्रहवाद और युद्धवाद के लिए सभी उपयोग मानव के अर्थ में, नैसर्गिकता के अर्थ में, पर्यावरण के अर्थ में निरर्थक होना समीक्षित होती है। यह निरर्थकता कई बार मनीषियों के मन में उद्गारों के रूप में आ चुकी है। इसका विकल्प न होने की स्थिति में यथास्थिति बनते ही आया।

तीनों प्रकार के वर्णित महत्वाकांक्षा संबंधी यंत्रों से व्यवस्था गति के रूप में ही नियतिक्रम स्वीकृति स्पष्ट होता है। नियति सहअस्तित्व सहज रूप में बनी हुई अथवा प्रकाशित स्वरूप है। ऐसे अनंत स्वरूप में से यह धरती भी एक स्वरूप है। इसी धरती में मानव भी एक स्वरूप है। यह तो मानव को भले प्रकार से पता लग चुकी है या स्पष्ट हो चुकी है कि मानव ही भ्रमित होकर धरती, जलवायु के प्रति अत्याचार करता है। इसका प्रमाण में यह देखने को मिला है कि पर्यावरण संतुलन के लिए उद्गार और आवाज योजनाओं के रूप में भी कुछ नौकरी करने वाले आदमी या नौकरी नहीं करने वाले मनीषी विशेषकर योजना के स्थल पर चर्चा करते हैं। उन सभी चर्चा का सार तत्व प्रदूषण को रोकने की न होकर कितना ज्यादा प्रदूषण में आदमी जी सकता है, इसका खोज किया जा रहा है। ऐसी नौकरशाही प्रदूषण नियंत्रण कार्य के मूल में भी व्यापार और शोषण ही निहित है। इस विधि से गम्य स्थली अनिश्चित है। अतएव ऊर्जा स्रोतों में से जो सर्वाधिक प्रदूषण कार्य है, उसका शोषण और उपयोग विधियों से मुक्ति पाना आवश्यक है। इसके लिए विकल्पात्मक ऊर्जा स्रोतों से ही सम्पन्न होना आवश्यक है। इस मुद्दे पर आगे सुस्पष्ट विधि से देख पाएंगे।

सम्पूर्ण उत्पादन के साथ श्रम नियोजन अनिवार्यत: निहित रहता ही है। उत्पादन की सार्थकता भी सुनिश्चित है। यह निश्चयन महत्वाकांक्षा, सामान्याकांक्षा के रूप में सूत्रित है। उत्पादन, उपयोग, सदुपयोग और प्रयोजनों के रूप में मूल्यांकित हो पाता है, तभी हर वस्तुओं का उपयोगिता मूल्य स्पष्ट होती है। उत्पादित सम्पूर्ण वस्तुओं की उपयोगिता पोषण, संरक्षण और समाज गति के रूप में गण्य है। इन्हीं कार्यों में सामान्य आकांक्षा, महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तु, द्रव्य, यंत्र और उपकरण, उपयोगी होना भी सुस्पष्ट है। इसी क्रम में हम दोनों विधा से संबंधित उत्पादनों का मूल्यांकन और उसके उपयोग,