अर्थशास्त्र
by A Nagraj
समाहित रहना सहज है। इसी स्वराज व्यवस्था में अखण्ड समाज व्यवस्था में सार्वभौम न्याय व्यवस्था समायी हुई है। विनिमय विधि में सार्वभौमता को पाने के लिए भी तन, मन, धन का सदुपयोग प्रणाली ही प्रधान ध्रुव है न कि भोग, बहुभोग और अतिभोग।
आवश्यकता के आधार पर हर जागृत मानव परिवार में उत्पादन कार्य सहज है। ऐसे उत्पादन का हर परिवार मानव सदुपयोग सुरक्षा चाहता ही है। हर परिवार मानव समृद्धिपूर्ण विधि से व्यक्त होना चाहता है अथवा समृद्धि सहित व्यक्त होना चाहता है। यही दो आधार हर जागृत मानव में प्रमाणित होता है और अन्य जागृत होने के क्रम में दोनों आधारों को स्वीकारे रहते हैं। इस प्रकार सर्वमानव अर्थ का सदुपयोग, सुरक्षा स्वीकारे ही है। ऐसी ज्वलंत सत्य सामने रहते हुए भी पूर्वावर्ती अर्थशास्त्र विद इस ओर ध्यान नहीं दे पाए। इसका दो ही कारण स्पष्ट हैं। पहला मानव और मानव परंपरा की मौलिकता, उसकी अखण्डता, सार्वभौमता और उसके अक्षुण्णता को पहचानना संभव नहीं हुआ था। उसका मूल कारण जीवन का रचना, स्वरूप, कार्य, लक्ष्य और उसका प्रमाणीकरण की विधियों में अनजान रहे। दूसरा यह भी प्रलोभन व्यापार संग्रह और भोगवाद से जुड़ी हुई मानसिकता से ही पूर्वावर्ती अर्थशास्त्रों का प्रणयण हुई। यही वर्गवाद, समुदायवाद का भी कारक रहा। इस प्रकार पूर्वावर्ती आर्थिक विचार, शास्त्र और तंत्रणाएँ समीक्षित हैं, जबकि आवर्तनशील अर्थ-विचार, शास्त्र, तंत्र पूर्णतया परिवार मूलक स्वराज्य स्वरूपत: अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में अंगभूत विधि से होना स्पष्ट है। आज भी, आदिकाल से भी और भविष्य में भी सम्पूर्ण उत्पादित वस्तुएं मानव श्रम के फलन में ही होना देखा गया और संभाव्य भी है। यह तथ्य भी सहज रूप में पहचानने-योग्य रहते हुए अर्थशास्त्र के मूल पूँजी के रूप में पूर्वावर्ती सभी विचार मुद्रा को ही पूँजी मानते हुए सभी ओर विचारों को फैलाया। सहअस्तित्व सहज आवर्तनशीलता क्रम में सर्वमानव में निपुणता, कुशलता, पांडित्यपूर्ण मानसिकता और इसे पूर्णतया परावर्तित करने योग्य स्वस्थ शरीर के संयोग से ही सम्पूर्ण उत्पादन सम्पन्न होना पाया जाता है। सम्पूर्ण प्रकार से नियोजित करने वाले श्रम का प्रयोजन प्राकृतिक ऐश्वर्य पर ही सार्थक होना पाया जाता है। जैसे आहार, आवास, अलंकार संबंधी वस्तुओं के लिए जितने भी श्रम नियोजन होती है, वह सब धरती, जलवायु, जंगल, वनस्पतियों के साथ ही अनुशीलन क्रम में सार्थक होना देखा गया। आहार के संदर्भ में धरती ही सम्पूर्ण आधार है। आहार वस्तुओं को इस धरती से ही पाया जाना देखा गया।