अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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चाहे किसी प्रकार से भी आहार द्रव्य को प्राप्त करें। (चाहे शाकाहार हो, चाहे मांसाहार)। आवास द्रव्य भी इस धरती से ही श्रम नियोजनपूर्वक उपलब्ध किया जाना देखा गया है और इसी प्रकार अलंकार द्रव्य भी इसी धरती के मूल वस्तु के रूप में देखना बनता है। विविध उपयोगिताएँ मानव द्वारा स्थापित किया गया श्रम नियोजन का ही यह महिमा होना त्रिकालाबाध रूप में स्पष्ट है। महत्वाकांक्षा संबंधी - दूरश्रवण, दूरदर्शन और दूरगमन कार्यों में आने वाली सम्पूर्ण यंत्र भी मानव का श्रम नियोजन पूर्वक प्राप्त द्रव्य और यंत्र हैं। यह भी सर्वमानव में, से, के लिए सुस्पष्ट है। यह सब अवलोकन इसीलिए आवश्यक समझा जब कि वास्तविक रूप में मूल धन श्रम शक्ति के रूप में मानव में ही निहित है। ऐसे मूल पूँजी सदा-सदा ही केवल मानव का ही स्वत्व है। इस बात पर भी ध्यान देना आवश्यक है।

मानव में ही श्रम पूँजी का विस्तार बहुआयामी प्रयोजन रूप में नियोजित होता हुआ आंकलित होता है। मानव निर्मित वस्तुएँ, इसी धरती में निहित द्रव्यों का ही वैभव को उजागर करने के क्रम में स्पष्ट है। एक सुई से लेकर महल तक, एक चक्के की गाड़ी से लेकर कई चक्के से चलने वाली यांत्रिकता को हाथ-पैर के दबावों से लुढ़कती हुई, चलती हुई क्रिया को, पानी, तेल, उष्मा के दबावों के सहारे चलने योग्य दूसरे नाम से गतिशील होने के योग्य तंत्रणाओं और बारूद से चलकर परमाणु तत्वों के दबाव से चलने वाले यान-वाहनों को मानव ने उपलब्ध किया। इसी यंत्र-तंत्रणा विधियों से चुम्बकीय विद्युत गति सूर्य ऊर्जा से परावर्तित उष्मा का संग्रहण और निश्चित धातु पदार्थ द्वारा यही सूर्य उष्मा का विद्युतीकरण के साथ-साथ हवा के दबाव प्रपात शक्ति का उपयोग विधि से विद्युतीकरण अथवा यंत्रीकरण विधियों से हम प्राप्त कर चुके हैं। इसी क्रम में दूरदर्शन, दूरश्रवण, दूरगमन यंत्रों जैसी उपलब्धियाँ मानव को उपलब्ध हो गया है। इन सबका उपयोग, सदुपयोग क्रम, भोग और बहुभोग क्रम मानव सम्मुख प्रस्तुत हो गया है। जिसमें से भोग और बहुभोग क्रम व्यापार और संग्रहण क्रम, शोषण और युद्ध क्रम के लिए मानव जाति सर्वाधिक रूप में दुरुपयोग करता हुआ देखा गया है। आंशिक रूप में सम्पर्क सूत्र समाचार गति के लिए भी ये सब उपयोगी सिद्ध हुए। इन सभी का सार्थकता व्यवस्था के अर्थ में उपयोग-सदुपयोग करना ही एकमात्र उपाए है। शासन गति के स्थान पर व्यवस्था गति, अ-सहअस्तित्ववादी शोषण गति से पोषण गति के लिए प्रयुक्त होना सदुपयोग है। एक ग्राम, ग्राम परिवार सभा से विश्व परिवार सभा तक