अर्थशास्त्र
by A Nagraj
सदुपयोग का मूल्यांकन कर पाना सहज है। सम्पूर्ण आहार आदि वस्तुएँ व्यवस्था क्रम में समृद्धि के रूप में ही संभाव्य है। क्योंकि उत्पादन के अनंतर ही उपयोग की आवश्यकता समीचीन होता है ‘जो उत्पादन में भागीदार नहीं है उन्हें उपयोग, सदुपयोग संबंधी जागृति होती ही नहीं।’ उत्पादन कार्य में भागीदार नहीं है मानवीयतापूर्ण मानव के रूप में प्रमाणित होना संभव नहीं। जो उत्पादन कार्य में लगे रहते हैं वे संग्रह नहीं कर पाते हैं एवं जो संग्रह करते हैं वे सब उत्पादन कार्य में शिथिल होने की ओर है। इससे यह स्पष्ट हो गई मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञानदर्शन सम्पन्न होने के पहले अभी तक मानव व्यवस्था में जीने और समग्र व्यवस्था में भागीदारी को प्रमाणित नहीं कर पाए। जबकि इसकी मानव मानस में नितांत आवश्यकता है।
परिवार मानव का परिवार व्यवस्था में निष्णात और प्रवृत्त रहना स्वाभाविक है। परिवार व्यवस्था में परिवार गत उत्पादन कार्य एक दूसरे का पूरक होता ही है। फलस्वरूप ही आवश्यकता से अधिक उत्पादन हो पाता है। परिवार का हर सदस्य उत्पादन में भागीदार होने का फल ही है। उत्पादित सभी प्रकार की वस्तुओं को उपयोग, सदुपयोग करना सहज है।
आज भी यह सर्वेक्षित तथ्य है स्वायत्त विधि से जो-जो उत्पादन करते हैं वे सब अपने से उत्पादित वस्तु का सर्वाधिक सुरक्षा करते हैं, सदुपयोग करना चाहते हैं। सदुपयोग का ख्याति, यश न होने के फलस्वरूप कुंठित रहते हैं। आज की स्थिति में सदुपयोग का ख्याति न होने का एक ही कारण है व्यवस्था के स्थान पर शासन मानसिकता पूर्वक जीना। शासन मानसिकता सुविधावादी मानसिकता को कहा जाता है। हर परिवार में सर्वेक्षण से यह पता लगता है ‘उत्पादन में जो सर्वाधिक पारंगत है परिवार में अपने को सुविधावादी, सुविधासेवी के रूप में प्रस्तुत करते हैं।’ क्योंकि भ्रमित परंपरा में इनके सम्मुख आदर्श शासन और सुविधा ही देखने को मिला रहता है। इसी क्रम में परिवार प्रधान उत्पादन कार्य में सक्रिय रहने की स्थिति में सुविधा और शासक के रूप में अपने को पाकर प्रसन्न होने का रास्ता मान लेता है। इसको दोनों विधियों से देखा गया है। महिलाएँ जिन परिवारों में उत्पादन कार्य में ज्यादा से ज्यादा प्रसक्त रहते हैं, सुविधा और शासन कार्य में उनका वर्चस्व रहता है। कोई-कोई इसको अनुशासन भी कहते हैं। जहाँ परिवार में पुरुष अधिकाधिक उत्पादन कार्य में सक्रिय रहता है, वहाँ का शासन,