अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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एक तोला सोना, दसों हजार संख्यात्मक पत्र मुद्रा के बदले में एक तोला सोना। यह भी एक मान्यता और आस्था पर आधारित कार्यक्रम रहा है इसमें व्यवहारिक और सार्थक कोई आधार दिखाई नहीं पड़ता। ऐसा क्रम रहस्यमयी स्थिति का विस्तार बनाता गया। यही कृत्रिम अभावों का कारण बन चुकी है क्योंकि पत्र मुद्रा के अधीन में संपूर्ण वस्तुओं को ग्रसित हुआ देखा जाता है। इसका स्पष्ट परिणाम यही हुआ जहाँ सर्वाधिक पत्र मुद्राएं संग्रहित अथवा निर्मित हैं, वहीं वस्तुएं कैद होना पाया जाता है। ऐसी घटनाओं को घटित कराने योग्य व्यक्तियों का संगठन व्यापार संघ कहलाता है। ऐसी व्यापार संघ के लाभ मानसिकता के अनुरूप उपयोगी वस्तु की कैद से सर्वसुलभ होने की गति से छुटकारा बन जाती है, वस्तुओं का कैद वस्तु की गति से छुटकारा पाना बन पाता है। ऐसी मानसिकता में लाभ और लाभ के बाद और लाभ की ओर गतित होना पाया जाता है। अभी तक लाभ का संतुष्टि बिन्दु कहीं, किसी देश काल में नहीं मिल पायी है। इस प्रकार अंतविहिन लाभ प्रक्रिया अथवा लाभ मानसिकता सहित सभी व्यापार विद्वान होना पाया जाता है। इससे और भी एक आकलन निष्पन्न होती है कि वस्तुओं का उत्पादन करने वाला सदैव ही गरीब रहना देखा गया।

लाभ पर आधारित व्यापार प्रणाली वस्तु और वस्तु मूल्य के साथ ही सीमित रहना पाया जाता है। इसी के साथ अर्थात् व्यापार संघ के साथ बैर विहिन परिवार, संघ या राष्ट्र या समुदाय ही नहीं बन पाया फलस्वरूप समुदाय चेतना और समाज चेतना के लिए प्रतिरोधक अथवा विरोधी मानस बन बैठा। उत्पादित वस्तुओं में गुणवत्ता और कला मूल्यों में (उत्पादित वस्तु का आकार-प्रकार, सजावट और सुरक्षा विधि) श्रेष्ठता जिससे मानव में जो अच्छा लगने की एक सहज क्रिया है उसके अनुसार स्वीकृत हो जाए। गुणवत्ता का तात्पर्य किसी भी वस्तु की कार्यशीलता, उपयोगिता के अर्थ में है। कार्यशीलता की निरंतरता मानव सहज रूप में अपेक्षित है। यह विशेषकर संपूर्ण प्रकार के यंत्रों आवास विधाओं में देखा जाता है। जहाँ तक अलंकार वस्तु होते है और आहार वस्तुएं आदि काल से अभी तक वैसे ही दिखाई पड़ती है। इस प्रकार आहार व्यवस्था, मानव इस धरती पर अवतरित रहने के पहले से ही समृद्ध रहा है, उसे पहचानने में मानव कुल को अवश्य समय लगा है। अलंकार और आवास संबंधी परिवर्तनों को अपनाता आया है। इसी के साथ सभी यंत्र निर्मित होने के उपरांत ही यह सभी व्यापार के फन्दे में फंसा ही है। व्यापार लाभ के फन्दे में लटका है। लाभ शोषण पूर्वक संग्रह,