अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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हुई। यह नियम और सिद्धांत के रूप में उदय हुआ। सभी नियम पुर्जों को अलग-अलग कर देखने की विधियों से आयी। अर्थात् किसी एक को अनेक भागों में बांटकर देखने के क्रम को नियम कहा गया है। इस सभी भागों को जोड़कर एक कार्य घटना को प्रमाणित कर देने की प्रणाली पद्धति को सिद्धांत कहा गया। इस क्रम को मानव कुल के लिए उपकार रूप जो समीचीन है अथवा उपलब्ध है वह तीन स्वरूप में है, दूरगमन, दूरश्रवण, दूरदर्शन। दूसरे विधा में विस्फोट तत्व जो पहले से ही रही, उसको हथगोला, बम के रूप में उपयोग करना, विध्वंस करना, विध्वंसकारी मानसिकता से तैयार किया। युद्ध और प्रतिरोध तो पहले से ही रहा। यह और आधुनिक, अत्याधुनिक होते-होते दूर मार अथवा प्रक्षेपण, विध्वंसक कार्यों के रूप में प्रयोग सिद्ध कर लिया। इसी क्रम में आहार, आवास, अलंकार में से आवास और अलंकार विधाओं में परिवर्तन हुआ। वर्तमान में सौ-सौ मंजिल तक की इमारतें देखी गई। स्वचालित यांत्रिकीय प्रणाली विकसित होकर वस्त्र, कागज पत्र, धातु कार्य विपुल रूप में केन्द्रीयकृत विधि से उत्पादन होने लगी और पीढ़ी से पीढ़ी में बेरोजगारी बढ़ी। किसी एक या दो धातुओं को अन्य सभी वस्तुओं को मूल्यांकन करने का आधार, ऐसे आधारभूत अर्थात् मूल्यांकन के आधारभूत धातु जिस देश के कोषालय में अधिक होता गया उन पर आधारित पत्र-मुद्रा का मूल्य बढ़ता गया। इस प्रकार वस्तु का प्रतीक धातु हुआ, धातु का प्रतीक पत्र हुआ। इस बीच चर्म मुद्रा भी प्रचलित होने की बात सुनने में आती है। इस प्रकार अब आधुनिक युग के अनुसार अर्थशास्त्र केवल अर्थ के अध्ययन के रूप में उभरी। अर्थ का अध्ययन वस्तु के प्रतीकात्मक मूल धातु, उसके संग्रहण, उसके तादात पर आधारित पत्र मुद्रा, पत्र मुद्राओं पर आधारित अथवा पत्र मुद्रा रूपी मूल्यों के आधार पर मूल्यांकित वस्तुओं का स्वरूप बन गई। इन सभी प्रयास में लाभ ही प्रधान तत्व हुआ। लाभ का स्वरूप सदा ही, जब से मानव में लाभ का आशा शुरू हुआ तब से, कम देकर अधिक पाना प्रवृत्ति रहा है। कितना कम देकर कितना अधिक पावे इसका ध्रुव अभी तक प्रचलित अर्थशास्त्रों के आधार पर प्रचलित नहीं हो पायी। अभी तक की प्रचलित अर्थशास्त्र उन्मुक्त विधि से, और नियंत्रित विधि से सोचा गया। दोनों अर्थ चिंतन लाभापेक्षी रहा है। और ऐसे लाभ पाने की विधि में कृत्रिम अभाव एक प्रधान तकनीकी मानी गई। यह मुद्रा रूपी पूंजी पर आधारित रहना पाया गया। कृत्रिम अभावपूर्वक सर्वाधिक लाभ की अपेक्षा सर्वाधिक घटनाओं में घटित हो भी गया। यहाँ उल्लेखनीय बात यही है कि विगत में सोचा गया।