अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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उत्पन्न विपदाएं अपने-अपने देश में प्रभावित न हो, जबकि प्रदूषण का प्रभाव इस धरती के सभी ओर फैली ही रहती है। इसका साक्ष्य है इस धरती के ऊपरी भाग में बनी हुई रक्षा कवच। अर्थात् इस धरती की ओर आने वाली सूर्य ताप को यह धरती स्वयं पचाने योग्य परावर्तन विधि और प्रणालीबद्ध करता रहा है। वह धरती के सभी ओर से विलय होता हुआ आधुनिक उपकरणों से भी देखा गया है। जिसको विज्ञान की भाषा में ओजोन का नाम बताया करते हैं। यह भी वैज्ञानिक मापदण्डों से पता लग चुका है कि यह धरती का ताप किसी न किसी अंश में बढ़ना शुरू कर दिया है। इसका गवाही के रूप में समुद्र का जल किसी मात्रा में बढ़ता हुआ पहचाना गया है। इसी के साथ यह भी पहचाना गया है कि धरती में ताप बढ़ने पर ध्रुव प्रदेशों में जमा हुआ बर्फ पिघल सकता है। यदि पिघल जाए तब धरती अपने में जितना विशाल क्षेत्र को पानी से रिक्त बनाए रखा है, उनमें से सर्वधिक भाग जल मग्न होने की संभावना पर ध्यानाकर्षण कराया जा चुका है।

यहाँ उल्लेखनीय घटना यही है। विज्ञानी ही खनिज तेल और कोयला को निकालने के लिए यांत्रिक प्रोत्साहन किए और उसी से प्रदूषण सर्वाधिक रूप में होना स्वीकारे। इसके पश्चात भी उन खनिज तेल और कोयले की ओर से अपना ध्यान नहीं हटा पा रहे हैं। यहाँ पर प्रदूषण और ताप संबंधी दो तलवार मानव जाति पर लटकी ही हुई है। यह सर्वविदित तथ्य है। तीसरे प्रकार से सोचा जाए कि यह विज्ञान व विवेकमान्य तथ्य है कि इस धरती पर जल जैसी रसायन निश्चित तादात तक गठित होने की व्यवस्था रहा है। इसका कारण स्त्रोत को ब्रह्माडीय किरणों का ही पूरक कार्य के रूप में समझ सकते हैं। इसका उदाहरण रूप में अभी-अभी चंद्रमा रूपी ग्रह पर आदमी जाकर लौटा है और वहाँ पानी न होने की बात कही गई है। वहाँ पानी गठित होने के लिए अब दो कारण दिखाई पड़ती है। एक तो मानव इस धरती से जाकर जल रूपी रासायनिक गठन क्रिया को आरंभ कराएं अथवा ब्रह्माडीय किरणों के पूरकता वश गठित हो जावे। इन आशयों को हृदयंगम करने के उपरांत जिस विधि से ब्रह्मांडीय किरणों के संयोग से जल बना ठीक इसके विपरीत यदि पानी वियोगित होने लगे तो धरती पानी विहीन हो जाएगी। और इसी क्रम में ब्रह्मांडीय किरण इस धरती में स्थित विकिरण परमाणुओं के संयोग से यदि परमाणु अपने मध्यांशों को उसके सम्पूर्ण गठन के विस्फोट के लिए तैयार हो जाता है और प्रजाति के सभी परमाणु विस्फोटित हो जाते हैं, तब क्या इस धरती के