अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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बड़े-बड़े उद्योगों का भी स्थान अवश्य ही बना रहेगा। अधिकांश प्रौद्योगिकियाँ लघु उद्योग सीमा तक ही केन्द्रित होना रहेगा। इन सबका यथावत् संचालन कार्य भी ग्राम स्वराज्य सीमा में सर्वाधिक सम्पन्न होना जैसे-जैसे आगे की सीढ़ियाँ होंगी वैसे-वैसे इनका तादात घटने की व्यवस्था है दिखाई पड़ती है। आवर्तनशीलता क्रम में प्रत्येक सीढ़ी में जिम्मेदारियों का सूत्र या दायित्वों का सूत्र बना ही रहेगा। शिक्षण संस्थाओं में सर्वाधिक जिम्मेदारी समायी रहना स्वाभाविक है। शिक्षा संस्कार ही स्वायत्त मानव का स्वरूप देने में अथवा स्वरूप को स्थापित करने का सार्थक मानसिकता प्रमाण कार्यप्रणाली है। वस्तु प्रणालियाँ समाहित रहेगी। वस्तु प्रणाली का तात्पर्य जीवन ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन ज्ञान और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान ही है। इसका प्रबोधन कार्य प्रणालियाँ पूरकता और आवर्तनशील विधियों से सम्पन्न होता रहेगा। यह नैसर्गिक संतुलन और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में सार्थक होगा।

आवर्तनशील अर्थशास्त्र - ऊर्जा

अभी तक ऊर्जा सम्पादन कार्य को धरती के पेट में समायी हुई खनिज तेल और खनिज कोयला, विकरणीय धातुओं को ऊर्जा सर्वाधिक स्रोत का लक्ष्य बनाया। धरती अपने में संतुलित रहने के लिए कोयला और खनिज तेल धरती के पेट में ही समाया रहना आवश्यक रहा। इसका गवाही यही है कि यह धरती पर मानव अवतरित होने के पहले तक, यही धरती इन दोनों वस्तुओं को अपने पेट में समा ली थी। इसे पहले विज्ञानी भी पहचान सकते थे। ऐसा घटित नहीं हुआ। यही मूलत: वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ धरती के साथ भी दुर्घटना को घटित करने का प्रयास भले ही अज्ञानता वश हुआ हो यह घटना की विकरालता थोड़ा सा भी जागृत हुए मानव को दिखाई पड़ती है। धरती अपने में सम्पूर्ण प्रकार की भौतिक, रासायनिक सम्पदा से परिपूर्ण होने के उपरांत ही इस धरती पर जीव संसार और मानव संसार बसी। जीव संसार तक ही सभी क्रम अपने में पूरक विधि से संतुलित रहना पाया जाता है। मानव ही एक ऐसा वस्तु है, अपने कल्पनाशीलता, कर्म स्वतंत्रतावश भ्रमित होने के कारण ही धरती में अपना वैभव को प्रकाशित करने का जो स्वरूप रहा है उसे हस्तक्षेप करने का सभी प्रयास मानव के लिए एक हाफा-दाफी का कारण बन चुकी है। पर्यावरण में प्रदूषण अपने चरमोत्कर्ष स्थिति में पहुँचने के उपरांत सभी देश यही सोचते हैं प्रदूषण का विपदा अथवा प्रदूषण से