अर्थशास्त्र
by A Nagraj
न्याय सुरक्षा के साथ-साथ ग्राम सुरक्षा कार्यक्रम, न्याय सुरक्षा समिति से संचालित रहेगा। इसी प्रकार हर स्तरीय सुरक्षा विधि बना रहेगा। यह क्रम से क्षेत्र सुरक्षा के अनन्तर ग्राम सुरक्षा की आवश्यकता, प्रधान राज्य के अनन्तर मुख्य राज्य सुरक्षा तक की गौणता और विश्व राज्य व्यवस्था के अनंतर प्रधान राज्य सुरक्षा की आवश्यकताएँ शून्य होना भावी है। भले ही आज बीसवीं शताब्दी के दसवें दशक में इसे कल्पना के रूप में ही स्वीकार लें। इस धरती की हालत वैज्ञानिक युग के अनन्तर जैसे बन पड़ी है और पर्यावरण संतुलन जैसा जर्जर छिन्न-भिन्न होता जा रहा है, उनके पहले भी किए गए, सोचे गए परिणामों के फलस्वरूप अनेकानेक नस्ल, रंग, जाति, धर्म, मत, संप्रदाय, देश, भाषा, वर्गों के रूप में बांटकर अनेक अहमता की दीवालें बन चुकी है। पूर्ववर्ती विधि से बनी हुई तमाम समुदायों में बंटी हुई मानव जाति सहअस्तित्व, अभय, समृद्धि और समाधान सम्पन्न होना संभव नहीं है। विकल्पात्मक अखण्ड सार्वभौम और अक्षुण्ण समाज व्यवस्था और जागृति सहज विधि से सम्पन्न होने के लिए विकल्पात्मक समाज-रचना विधि-व्यवस्था कार्यविधि, व्यावहारिक योजना विधि। इसके लिए विकल्पात्मक जीने की कला विधि, विकल्पात्मक विचार विधि, विकल्पात्मक दर्शन विधियों को जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना अनिवार्य है।
इस प्रकार एक परिवार से विश्व परिवार तक संबंध रचना कार्य सूत्र संबंधी ढांचा स्पष्ट हुई। इसी क्रम में ग्रामोद्योग, कृषि, पशु-पालन, कुटीर उद्योग को ऊर्जा संतुलन को सर्वाधिक विश्वसनीय बनाने के लिए जो तकनीकी की धारक वाहकता है वह शिक्षा परंपरा में ही रहेगी। प्रत्येक अध्यापक आचार्य विद्वान और मेधावी जन ही उपकार कार्य के रूप में प्रौद्योगिकी योजनाओं को तकनीकी कर्माभ्यासों को जन सामान्य में पहुँचाने का कार्य करते ही रहेंगे। क्योंकि व्यवहारवादी समाज का कार्य व्यवहार विचार अनुसंधान और संधान ही कार्यकलाप के रूप में निरंतर मानव के सम्मुख बना ही रहता है। प्रत्येक व्यक्ति में श्रेष्ठता को प्रमाणित करने का अरमान और निष्ठा स्वीकृत है। इसे प्रमाणित करने का प्रयासोदय प्रत्येक व्यक्ति में समीचीन है। इसीलिए परंपरा जागृत होने के उपरांत ही ये सर्वसुलभ होना अभिप्रेत है। इसी क्रम में आवर्तनशील अर्थव्यवस्था को व्यवस्था कार्य व्यवहार के अंगभूत रूप में पहचानना एक अनिवार्य स्थिति रही है।