अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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सभी प्रजाति के परमाणु स्वयं स्फूर्त विस्फोट प्रणाली में आहत नहीं हो जाएंगे ? इसके लिए अनुकूल परिस्थिति को बनाने के लिए मानव ने क्या अभी तक कुछ भी नहीं किया है ? ये सब मानव सहज परिकल्पनाएँ उभर आती हैं। हमारा कामना ऐसा कोई दुर्घटना न हो, उसी संदर्भ में यह पूरा सवाल है।

बीती गुजरी वैज्ञानिक प्रयासों का जो कुछ भी परिणाम धरती पर असर किया है और धरती के वातावण में असर किया है, यही असर आगे और बढ़ने पर स्वाभाविक रूप में यह धरती जिस विधि से समृद्ध हुई उसके विपरीत विधि स्थापित हो सकता है। क्योंकि विकास भी नियम से होता है, ह्रास भी नियम से होता है।

पहले इस बात को इंगित कराया है जो ऊर्जा स्रोत विगत के बुद्धिमान पीढ़ी ने अपनाया उसके पक्ष में सम्पूर्ण प्रौद्योगिकी निर्भर हुई। उससे हुई प्रदूषण की पराकाष्ठा। अब मुख्य रूप में ऊर्जा संबंधों में सभी आवर्तनशील विकल्पों को अपनाना अनिवार्य है। अभी तक अपनाया हुआ ऊर्जा स्रोतों में से गोबर, कचड़ा गैस, पवन ऊर्जा, और सौर ऊर्जा, प्रपात ऊर्जा (जल विद्युत) यह आवर्तनशील होना स्पष्ट हो चुकी है। जिसके संयोग से जितने भी कार्यकलाप करते हैं उससे कोई प्रदूषण नहीं होता। अभी तक जैसा नदी के प्रपात स्थलियों में बिजली प्रवाह प्राप्त करने का यंत्र संयोजनों को सजाया जा चुका है और समुद्र तरंग के बारे में भी प्रयोग शुरू किया गया है। इसी के साथ जल प्रवाह शक्तियों को विद्युत प्रवाह शक्तियों के रूप में पाने का प्रयास करना समीचीन है। यह सर्वाधिक, सभी देशों में समीचीन है। कोई न कोई महत्वपूर्ण नदी सभी समय बहती रहती है। बहाव का दबाव अनुस्यूत रहता है। उतने दबाव से संचालित होने वाली विद्युत संयंत्र को सर्वसुलभ करना आवश्यक है। ऐसी तकनीकी को प्राप्त कर शिक्षण पूर्वक लोक व्यापीकरण करना आवश्यक है। विद्युत संयंत्रों का विभिन्न स्तर मानव जाति पा चुकी है। इसलिए प्रवाह तंत्र के अंतर्गत इसे पाना, चित्रित कर लेना, व्यवहारीकरण कर लेना सहज है।

जिस गति प्रौद्योगिकी स्थितियों को पाकर हम अभ्यस्त हो गए हैं, उसमें हर दिशा में गति की ही बात आती है। ऊर्जा गति के लिए संयंत्र को विद्युत चालित, तेल चालित, वाष्प चालित विधियों से संचालित करते हैं। विद्युत को प्रवाह शक्तियों से सर्वाधिक रूप में पा सकते हैं। तैलीय यंत्रों के लिए खनिज तेल के स्थान पर वनस्पतिजन्य तेल