अर्थशास्त्र
by A Nagraj
से चलने वाली यंत्रों की संरचना एक आवश्यक घटना है। इसके लिए मानव विचार कर ही रहा है। इस विधा में दृष्टिपात करने पर वनस्पति तेल से संचालित होने वाले यंत्र इसमें आवर्तनशीलता अपने आप में स्थापित है। वनस्पतियाँ पुष्टितत्व के साथ ही हर प्रकार के द्रव्यों का संग्रहण कर सकता है। मानव के लिए आवश्यकीय प्राणवायु को समृद्ध करने के लिए सहायक कार्यकलाप के रूप में अधिकांश वनस्पतियों को देखा जाता है। वनस्पति तेल से संचालित क्रियाकलाप से तैलीय धूम्र, वनस्पति संसार में पाचन योग्य रहता ही है। इसके स्रोत संबध को इस प्रकार समझा गया है कि प्रत्येक कृषक अपने यात्रा कार्य में नियोजित होने वाले तेल का तादात समझना, समझाना संभव है। इसे किसी भी परिवार का यात्रा कार्य एवं कृषि कार्यों के आधार पर आवश्यक तादात को पहचाना जाता है। इस पहचान के आधार पर किसी भी तैलीय बीजों को तैयार कर प्रस्तुत कर सकता है। जैसे नीम, कंजी (करंज), एरण्ड, क्षुद्र एरण्ड इत्यादि। यह भी देखा गया है कि हर देश, काल, परिस्थितियों में तैलीय वृक्षों को हर कृषक पहचाना ही रहता है। जहाँ जो चीज प्रचुर मात्रा में रहती है, उसको भी पहचाना रहता है। यह तभी सफल होता है, परिवार मानव और परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी हो जाए। तैलीय स्रोत बीज वृक्ष न्याय से नित्य स्रोत होना देखा गया है। यह आवर्तनशील होना नियति सहज है। इससे उत्पन्न धूम्र वनस्पतियों का आहार होना, वनस्पतियों में यह धुआँ पच जाना देखा जाता है। इस विधि से यह भी क्रम से वृक्ष बीज, तेल धूम्र और वृक्षों का आहार, पुन: बीज विधि से आवर्तनशील होना दिखाई पड़ता है। ऐसे तैलीय वृक्षों को सड़कों के किनारे आवश्यकतानुसार जंगल में रोपित कर मानव जाति के लिए आवश्यकता से अधिक तैलीय बीजों का संग्रहण करना नित्य समीचीन है। इसमें दो ही बिन्दु प्रधान हैं। धरती का संतुलन और मानव संतुलन प्रधानत: अध्ययन और योजना का आधार बिन्दु हैं। यह तो बहुत स्पष्ट है मानव परम्परा की अक्षुण्णता धरती की संतुलन और स्वस्थता पर निर्भर है।
मानव का संतुलन जीवन जागृति पर आधारित है। जीवन जागृति सुलभता पीढ़ी से पीढ़ी के लिए जागृत परंपरा पर ही आधारित है। (इस बीसवीं शताब्दी के दसवें दशक तक मानव विभिन्न रहस्यमयी अहमतावादी अस्मिता सहित संघर्ष, कुण्ठा, निराशा, भय, सशंकता, द्रोह, विद्रोह, घृणा उपेक्षा जैसी अवांछनीय प्रताड़नाओं से प्रताड़ित होता ही आया हुआ है। इसे हम सब अच्छी तरह से समझ गए हैं अथवा समझ सकते हैं। इसी