अर्थशास्त्र

by A Nagraj

Back to Books
Page 40

व्यूह, ब्रह्मांडीय किरण स्वभाव गति रूप में सहअस्तित्वकारी गतिविधि कार्यकलाप करता हुआ समझ में आता है।

कृषि-उर्वरकता-ऊर्जा और नैसर्गिकता में आवर्तनशीलता

कृषि उर्वरकता-ऊर्जा और नैसर्गिकता में आवर्तनशीलता अस्तित्व सहज सहअस्तित्व में पाया जाता है। कृषि का तात्पर्य सर्वविदित है धरती से बीज-वृक्ष कार्य प्रणाली पूर्वक मानव शरीर पोषण योग्य और आक्रामक-संक्रामक और संयोगात्मक रोगों से मुक्ति पाने योग्य वस्तुओं का पा लेना है। ऊर्जा का तात्पर्य धरती से जितने भी शरीर के लिए पुष्टि तत्व कृषि विधि से प्राप्त किया जाता है। यही आहार रूपी ऊर्जा है।

‘उर्वर धरती’ का तात्पर्य एक बीज को अनेक बीजों में परिणित करने वाली धरती से है। ‘उर्वरक’ का तात्पर्य धरती को उर्वर बनाने वाली वस्तु व द्रव्यों से है। धरती का अध्ययन क्रम में अर्थात् मानव धरती को समझने के क्रम में धरती को उर्वर, अनुर्वर स्थितियों में दृष्टव्य है।

उर्वर धरती को मानव ने पहचाना है। धरती को उर्वर बनाए रखना भी चाहता है। मूलत: धरती उर्वर बना कैसा है, यह भी बहुतायत लोगों के मन में स्पष्ट है। यथा धरती में वनस्पति के प्रकटन के अनन्तर उर्वरकता बढ़ती आया है। इस प्रक्रिया को ऐसा समझा गया है कि जहाँ झाड़-पौधे, घास-फूस होते हैं, वहाँ की मिट्टी शनै:-शनै: उर्वर होना पाया जाता है। वनस्पतियाँ सड़कर, विरचित होकर ही धरती उर्वर और उर्वरता में समृद्धि की ओर दिखाई पड़ती है, अथवा स्पष्ट है। ऐसी उर्वरता श्रेष्ठ-श्रेष्ठतर रूप में व्यवस्थित हुए स्वरूप में देखने को मिलती है। यह निर्विवाद है वनस्पति संसार परमाणु, परमाणुओं से रचित अणु, अणु संयोगित रसायन द्रव्य, रसायन द्रव्यों से रचित प्राणकोषा, प्राणकोषा से रचित रचनाएँ देश धरती में देखने को मिला। इस यथार्थ घटना के आधार पर यह विदित होता है कि धरती में पाए जाने वाले किन्ही प्रजाति के पदार्थ ही वनस्पतियों के रूप में परिणित होते हैं। साथ ही ठोस वस्तुएं ठोस वस्तु के साथ, विरल वस्तुयें विरल वस्तुओं के साथ, तरल वस्तुयें तरल वस्तुओं के साथ सहअस्तित्व रत पाया जाता है। इतना ही नहीं इसे प्रमाणित करने के क्रम में निरंतर उद्यमशील है। जैसा धरती की सतह में अथवा धरती की सतह के नीचे किसी भी वस्तु को विरल स्वरूप प्रदान किया