अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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कुटीर उद्योग से संबंधित उत्पादन कार्य :- हस्त करघा, रेशम उद्योग, कालीन व चटाई बनाना, साबुन, तेल, सेन्ट, क्रीम, दन्त मंजन, शैम्पू व अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों का उत्पादन, पत्तों से दोना/कटोरी आदि बनाने का कार्य (जो कि रेलवे व ब्याह शादी व अन्य उत्सवों में उपयोग में लाए जा सकते हैं।) आटा चक्की, तेल घानी, धान कुटाई, गुड़ शक्कर बनाना, अचार, जाम, मुरब्बा, फलों का रस पेय पदार्थों का निर्माण, अगरबत्ती, काजल, जड़ी बूटियों पर आधारित दवाइयां।

उपर्युक्त सभी कुटीर उद्योगों के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराना।

ग्रामोद्योग :-

मिट्टी पर आधारित व स्थानीय मदद से उपलब्ध, कच्चे माल से आवास बनाने का उद्योग, फलों सब्जियों का डिब्बा बंद करना/संरक्षण, ग्राम के लिए आवश्यकीय औजार। कल पुर्जो का निर्माण स्थानीय रुप से उपलब्ध, कच्चे माल पर आधारित उद्योग, कृषि व आस पास के उद्योगों के लिए कल पुर्जो का उत्पादन, कूप, तालाब जलाशय, नहर, सड़क, बनाने के लिए जानकारी व व्यवस्था।

सेवा :-

धोबी, नाई, साइकिल, रेडियो, टी.व्ही., कृषि यंत्रों व अन्य यंत्रों की मरम्मत, सुधारने के लिए कुछ व्यक्तियों को लगाया जायेगा। यहां प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी, उन्हें उपलब्ध कराया जायेगा। इनके द्वारा लिया गया सेवा का प्रतिफल को, ग्राम सभा द्वारा तय किया जायेगा।

स्वायत्त सहकारी विनिमय-कोष व्यवस्था

गाँव में हर तरह का विनिमय “सहकारी विनिमय-कोष समिति” द्वारा संचालित “स्वायत्त सहकारी विनिमय-कोष द्वारा किया जायेगा। स्वायत्त का तात्पर्य समझदारी सहित आवश्यकता से अधिक उत्पादन। विनिमय कोष, गाँव की मुख्य संस्था होगी। इसका अपना अलग से संविधान होगा। यह संस्था लाभ-हानि मुक्त व्यवस्था पर कार्य करेगी। इसका मुख्य उद्देश्य गाँव के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उत्पादित वस्तुओं का क्रय करना व उनकी आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का विक्रय करना होगा। साथ ही यह कोष “उत्पादन-कार्य विनिमय सलाहकार समिति” व “शिक्षा समिति” के साथ मिलकर कार्य