अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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सामूहिक रुप से या प्रत्येक परिवार के लिए लगाया जायेगा। पशुपालन का मुख्य उद्देश्य खेत जोतने के अलावा गाँव में आवश्यकता से अधिक दूध, घी आदि का उत्पादन, गोबर गैस द्वारा गाँव में ईंधन व प्रकाश तथा खाद की पूर्ति करना होगा। पशुपालन इस अनुपात में करना होगा। जिससे गाँव की आवश्यकतानुसार खाद की पूर्ति, गोबर व कम्पोस्ट खाद पर्याप्त हो सके। साथ ही मिट्टी का लवणी करण, अम्लीय करण कठोरपन, व उर्वरक क्षमता में हो रहे ह्रास को पूरी तरह रोका जा सके।

प्रत्येक कृषक अपने खेत में इस प्रकार का फसल-चक्र अपनाएगा जिससे उसके पास जितने पशु हैं उसके लिए पर्याप्त मात्रा में चारा, घास, भूसी मिल सके। इस व्यवस्था में उन्हें पारंगत बनाने की व्यवस्था होगी।

पशुओं के रोग निवारण के लिए स्थानीय अनुभवों को सर्वाधिक उपयोग करने की व्यवस्था होगी। इन उपायों से रोग निवारण न होने की स्थिति में बाह्य विशेष चिकित्सा की व्यवस्था होगी।

उपरोक्त अर्हता को प्राप्त करने की व्यवस्था उत्पादन सलाहकार समिति करेगी। देश विदेश में शहद की बढ़ती हुई मांग को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

स्थानीय मानसिकता व आवश्यकताओं के आधार पर भेड़, रेशम के कीड़े, बकरी व अन्य पशुओं के पालन की व्यवस्था की जाएगी।

वन वनोपज व वनौषधि :-

गाँव सीमावर्ती वनों (यदि वे हैं तो) का प्रबंध, “उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति” द्वारा किया जायेगा। वनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रत्येक गाँव वासी की होगी। वन से वनोपज व वनौषधियों के संग्रह की व्यवस्था उत्पादन सलाहकार समिति करेगी। कुछ ग्राम वासियों की आजीविका का साधन वनोपज व वनौषधियों का संग्रह करना ही होगा। उनके द्वारा संग्रह करने के आधार पर ही विनिमय कोष क्रय कर उनका मूल्य देगा।

गाँव के लिए वनों से लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति सदुपयोगिता अनुसार “उत्पादन-कार्य सलाहकार समिति” तय करेगी ताकि वनों के संरक्षण में कोई कमी न आये।