अर्थशास्त्र
by A Nagraj
अन्य राष्ट्रीय कृत बैंक से जो ब्याज मिलता है वह उनको देगा। यह विधि तब तक रहेगी, जब तक, बैंक व विनिमय-प्रणाली अलग-अलग रहेगी। पूरे देश में स्वराज्य व्यवस्था स्थापित होने पर लाभ-हानि मुक्त विनिमय प्रणाली स्थापित हो जाएगी।
गाँव से सभी प्रकार की कर वसूली का दायित्व विनिमय कोष का होगा। कर निर्धारण का कार्य ग्राम सभा करेगी।
संक्रमण काल में उपरोक्त बैंक का गारन्टी दार, राष्ट्रीय कृत सहकारी बैंक होगा जो आरंभ से उसे कार्यशील पूंजी व अन्य ऋण देगा। हानि की भर पाई करेगा। विनिमय-कोष ही आगे अपने सदस्यों को ऋण देगा व वह ही उनसे वसूली करेगा। प्रत्येक सदस्य जो ऋण लेगा वह उत्पादित वस्तुओं के रुप में विनिमय कोष का ऋण लौटा देगा।
विनिमय-कोष शनैः-शनैः सरकारी बैंक से ली गई पूंजी को लौटाता रहेगा। इस तरह सरकारी बैंक के रुपये का ज्यादातर उपयोग होगा।
आरंभ में समाज सेवी (प्रशिक्षण प्राप्त) व्यक्ति विनिमय कोष को चलावेंगे। बाद में स्थानीय व्यक्ति जब व्यवहार शिक्षा/व्यवसाय शिक्षा में पारंगत हो जावेंगे तब वह उस बैंक को चलावेंगे।
सौ परिवार समूह के गाँव के लिए औसतन तीन व्यक्ति विनिमय कोष को चलावेंगे। इसमें से एक व्यक्ति गाँव में उत्पादित वस्तुओं को, अन्य बाजार में बेचेगा व अन्य बाजारों से सामान क्रय कर, विनिमय बैंक में लाएगा। दूसरा व्यक्ति लेखा जोखा व खातों की देख-रेख करेगा। तीसरा व्यक्ति सामान का क्रय-विक्रय करेगा। व उनको भंडार में रखने की व्यवस्था करेगा। आवश्यकता पड़ने पर अन्य व्यक्तियों को भी विनिमय कोष में मनोनीत किया जा सकता है।
विनिमय-कोष के काम काज को सुगम बनाने के लिए कम्प्यूटर को प्रयोग में लाया जायेगा। कालान्तर में विनिमय-कोष व्यवस्था, पूरे राज्य व देश में, स्थापित हो जाने पर, ग्राम विनिमय-कोष क्रय से, ग्राम समूह क्षेत्र, जिला मंडल, मुख्य राज्य व प्रधान राज्य के विनिमय कोष समितियों के साथ आदान-प्रदान से जुड़ा रहेगी। “विनिमय-कोष” संविधान के अनुसार, कार्य करता रहेगा, जिसकी जिम्मेदारी विनिमय कोष समिति की होगी। जो समय-समय पर खातेदार सदस्यों की सामान्य बैठक बुलाकर,