अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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एक ग्राम में कम से कम 100 परिवार की परिकल्पना की जाती है। पाँचों आयाम संबंधी व्यवस्था सफल होने के लिए कम से कम 100 परिवार का होना एक आवश्यकता है। 100 परिवार के बीच सामान्य आकाँक्षा संबंधित सभी अथवा सर्वाधिक वस्तुएँ ग्राम में ही उत्पादित होना सहज है। उत्पादन कार्यों में परिवार मानव जब संलग्न होता है, उसे निरीक्षण परीक्षण करने पर पता लगता है कि प्रत्येक उत्पादन कार्य निपुणता, कुशलता, पांडित्य सम्पन्न मानसिकता, विचार, इच्छा, समय खण्ड, हस्तलाघव और निश्चत साधन के योगफल में होना पाया जाता है। जहाँ तक साधनों की गणना है यह परंपरा के रूप में पीढ़ी से पीढ़ी अधिक साधन सम्पन्न होने की व्यवस्था है। यहाँ यह भी ध्यान रखना आवश्यक है मानव, जलवायु, धरती, वन, खनिज जैसी नैसर्गिकता में और अनंत और व्यापक ब्रह्मांडीय किरणों के वातावरण में होता हुआ देखने का मिलता है। इसी के साथ साथ मानवकृत उप-वातावरण सहज ही गण्य होता है। अभी यहाँ मानवकृत वातावरण में परिवर्तन, परिवर्धन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। नैसर्गिकता पर किए जाने वाले हस्तक्षेपों, श्रम नियोजनों, प्रतिफलों, उसकी उपयोगिता, सदुपयोगिता और प्रयोजनशीलताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह मानवकृत वातावरण में से एक पक्ष है। इसी के साथ साथ मानवकृत वातावरणिक सूत्र जुड़ा ही रहता है। अन्य वातावरण का तात्पर्य नैसर्गिक और ब्रह्मांडीय वातावरण अविभाज्य वर्तमानित रहने से है। इस प्रकार समग्रता के साथ ही यह धरती, धरती की समग्रता के साथ ही मानव, मानव के समग्रता के साथ ही व्यवस्था और समाज परिकल्पना अध्ययन, योजना और क्रियान्वयन क्रम में मानवीयतापूर्ण मानव के वैभव की पहचान होती है। इसी विधि से मानव समाज और व्यवस्था का अविभाज्य स्वरूप को परिवार और परिवारमूलक व्यवस्था के रूप में देखा गया है। जो स्वयं स्वराज्य और धर्म अविभाज्य रूप और उसका प्रमाण होना पाया गया है। अस्तु समग्र मानव को ध्यान में रखते हुए पाँच आयाम सम्पन्न व्यवस्था को परिपूर्णता के रूप में अध्ययन किया गया है। इसी के अंगभूत उत्पादन, विनिमय-कोष के आधार पर अथवा कार्यप्रणाली के आधार पर ग्राम से आरंभित स्वराज्य वैभव सूत्रों के अंगभूत होने के कारण ग्राम सभा से विश्व सभा तक इसकी लम्बाई पहुँचना स्वाभाविक है।

ग्राम सभा से मनोनयन पूर्वक व्यवस्थित विनिमय कोष व्यवस्था सूत्र और उत्पादन कार्य सूत्र यह दोनों अविच्छिन्न रूप में विशाल और विशालता की ओर सम्बद्ध होना