अर्थशास्त्र

by A Nagraj

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उपयोगिता-पूरकता, परस्पर पूरकता, उसका प्रयोजन रूपी सहअस्तित्व, दृष्टा, कर्ता, भोक्ता केवल मानव में ही मौलिक रूप में ज्ञान, विवेक व विज्ञान विद्यमान है। इसीलिए मानव सम्पूर्णता के साथ हो, सार्वभौम व्यवस्था को और प्रत्येक मानव अपने में व्यवस्था होने के स्वरूपों को स्पष्टतया अध्ययन करता है। इसी क्रम में आवर्तनशील अर्थव्यवस्था समग्र व्यवस्था का अंगभूत होना सहअस्तित्व सहज प्रणाली है।

मूल्यांकन संबंधी निश्चयन हर ग्राम से आरंभ होकर विश्व परिवार विनिमय कोष तक संबंध रहना आवश्यक है। शिक्षा पूर्वक हर व्यक्ति में निपुणता, कुशलता, पाण्डित्य सुलभ होता है। फलस्वरूप उत्पादन कार्य में दक्ष होना पाया जाता है। इसी आधार पर प्रत्येक व्यक्ति में स्वायत्तता पूर्ण लक्ष्य अध्ययन काल से ही समाहित रहता है। सम्पूर्ण उत्पादन की कोटि और स्वरूप स्पष्ट हो चुका है। समृद्धि का सर्वाधिक आपूर्ति आहार, आवास, अलंकार संबंधी वस्तुओं, उपकरणों और सामग्रियों सहित प्रत्येक ग्राम सीमा में जो कुछ भी प्राकृतिक ऐश्वर्य, जलवायु, वन, खनिज, नैसर्गिकता के रूप में रहते ही हैं। इन्हीं आधारों पर या इन्हीं के पृष्ठभूमि में मानव अपना श्रम नियोजन करने का कार्यक्रम बनाता है। हर परिवार अपने प्रतिष्ठा के अनुरूप आवश्यकताओं का निर्धारण करने में मानवीयता पूर्ण शिक्षा संस्कार के बाद ही समर्थ होना पाया जाता है। ऐसे परिवार मानवों से सम्बद्ध परिवार अपने आवश्यकता की तादात, गुणवत्ता सहित आवश्यकताओं को अनुभव करेंगे और उत्पादन कार्य को अपनायेंगे। हर गाँव में साधारणतया कृषि, पशुपालन, ग्राम शिल्प, कुटीर उद्योग, हस्तकला, ग्रामोद्योगों को अपनाना सहज है। इसी आधार पर हर परिवार के लिए आवश्यकतानुरूप उत्पादन कार्य का अवसर समीचीन होना स्पष्ट है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि सम्पूर्ण आवश्यकताएँ शरीर पोषण, संरक्षण और समाज गति में ही उपयोगी, सदुपयोगी, प्रयोजनशील है। इसी स्पष्ट नजरिये से जीवन ज्ञान सम्पन्न हर मानव को आवश्यकताएँ सीमित दिखाई पड़ती हैं और आवश्यकता के अनुरूप उत्पादन श्रम शक्ति मूलत: जीवन शक्ति की ही अक्षय महिमा होने के आधार पर आवश्यकता से अधिक उत्पादन में विश्वास स्वाभाविक है। यह स्वायत्त मानव में अभिव्यक्त होने वाले आयामों में से उत्पादन कार्य भी एक आयाम है। इस विधि से आवश्यकताएँ सीमित संयत होना पाया जाता है। इसी सूत्र के आधार पर अपने उत्पादन कार्यों को विभिन्न वस्तुओं के रूप में परिणित करने में निष्ठान्वित होते हैं।