अर्थशास्त्र
by A Nagraj
संबंधी वस्तुएं हैं। यही सब अथ से इति तक मात्रा और गुणवत्ता सहित उत्पादन का सूत्र है। इसके लिए सम्पूर्ण सूत्र मानव से ही प्रतिपादित हुई है। वस्तुओं को संग्रह, भोग, अतिभोग की ओर प्रयोग करने का कार्य मानव विगत कई शताब्दियों से करता आया है। इसके लिए लाभोन्मादी अर्थ चिंतन को ‘धन का विज्ञान’ के नाम से लोक व्यापीकरण किया। ऐसा लाभोन्मादी अर्थ चिंतन समाज-रचना और व्यवस्था का आधार बिन्दु नहीं बना अपितु संघर्ष का आधार बना। संघर्ष विधि से संपूर्ण वस्तुओं का अपव्यय होना भावी हो गया। इसी कारणवश मानव शुभ चाहते हुए अशुभ के लिए प्रवर्तनशील होने विवश रहा। और संघर्ष को अपना लिया।
भ्रमित रहने की विवशता फलस्वरूप लाभोन्मादी, भोगोन्मादी और कामोन्मादी प्रवृत्तियों में ग्रसित होना पाया जाता है। इन्हीं उन्मादों की ओर प्रवर्तित करने की क्रियाकलापों को विद्वता, कलाकारी, किंवा नेतृत्व भी मान लिया गया है। अस्तु, व्यक्ति में अंतर्विरोध, उसका स्रोत सुस्पष्ट होने के उपरान्त परिवार में अंतर्विरोध, मतभेद और द्वेष के रूप में; समुदायों की परस्परता में मतभेद विवाद और संघर्ष में ग्रसित रहना हम देख चुके हैं, सर्वविदित है। इसीलिए उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनशील विधियों का अध्ययन आवश्यक और अनिवार्य बन चुकी है।
उपयोगिता-सदुपयोगिता-प्रयोजनशीलता का चित्रण
वस्तुएं :
- उत्पादित वस्तु की परिभाषा: समय बद्ध विधि से निपुणता कुशलता व पांडित्य पूर्वक प्राकृतिक ऐश्वर्य पर किया गया श्रम नियोजन पूर्वक पाया गया फलन-उपयोगिता सुंदरता सम्पन्न वस्तुयें।
- पांडित्य की परिभाषा: जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन, मानवीयतापूर्ण आचरण में पारंगत प्रतिष्ठा।
- समयबद्ध नियोजन की परिभाषा: निश्चित समय में पहचाना गया प्राकृतिक ऐश्वर्य पर निपुणता, कुशलता का नियोजन करना।
समय - क्रिया की अवधि = काल = समय