मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था रूप में सम्पूर्ण विधि स्वीकार होना, प्रमाणित होना।

व्यवस्था = उपयोगिता-पूरकता सहज मानवीयता पूर्ण आचरण वैभव को दश सोपानीय व्यवस्था में, से, के लिये प्रमाणित करने का कार्यक्रम में भागीदारी करना।

उद्देश्य = मानव लक्ष्य, जीवन मूल्य मानव परंपरा में प्रमाणित रहना, करना, कराना, करने के लिए सहमत होना।

6.5 (15) शिक्षा-संस्कार व्याख्या स्वरूप

शिक्षा में वस्तु = सहअस्तित्व सहज ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहित कायिक, वाचिक, मानसिक व कृत, कारित, अनुमोदित प्रमाण।

शिक्षक और अभिभावक = सहअस्तित्व दर्शन बोध ज्ञान प्रमाण, जीवन ज्ञान बोध प्रमाण सम्पन्न होना, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान प्रमाण होना रहना।

विवेक = मानव लक्ष्य, जीवन मूल्य बोध अनुभव प्रमाण।

विज्ञान = मानव लक्ष्य में, से, के लिए सुनिश्चित दिशा, व्यवहार व कर्माभ्यास नियम बोध अनुभव प्रमाण परंपरा में, से, के लिए सहज सुलभ होना।

शिक्षा वस्तु सहज ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज विधि से सिद्धांतों का धारक-वाहक शिक्षक-अभिभावक होना रहना है।

शिक्षा = अभिभावक-शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों को अभ्युदय के अर्थ में सहमत सहित रूप में प्रमाणित रहना।

शिक्षक = पूर्णतया समझदार, ईमानदार, जिम्मेदार, भागीदार रहना शिक्षा प्रणाली सहज वैभव है। जागृति स्रोत व वर्तमान में प्रमाण रूप में होना वैभव है।

अभिभावक = अभ्युदय को भावी पीढ़ी में आवश्यकता अपेक्षा सहित स्वयं की उपयोगिता-पूरकता को प्रमाणित करने वाला अभिभावक है।

विद्यार्थी = भ्रम मुक्ति व समझदारी के लिए साक्षरता, भाषा व अध्ययन मानवीयता पूर्ण आचरण में पारंगत होने के लिए, करने के लिए, अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी सहित मानव लक्ष्य को साकार करने के लिए आशा, अपेक्षा, आवश्यकता व जिज्ञासु होना है।