मानवीय संविधान

by A Nagraj

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नृत्य = मानव चेतना सहज प्रयोजन के अर्थ में नाट्य, गीत-संगीत, भाषा, भाव = मूल्य = मौलिकता = समाधान = सुख = मानवापेक्षा भाव-भंगिमा, मुद्रा-अंगहार सहज संयुक्त अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन व्यवहारिक है।

सुख, शान्ति, सन्तोष व आनंद सहज सम्प्रेषणायें आप्लावन सहज स्वीकृति में सार्थक होता है। सर्वतोमुखी समाधान ही सुख, समाधान-समृद्धि ही शान्ति, समाधान-समृद्धि-अभय ही संतोष, समाधान-समृद्धि-अभय-सहअस्तित्व प्रमाण ही आनंद है। यही सर्वशुभ सूत्र है। यही सार्थक नृत्य भावों का आधार है।सर्वशुभ में स्वशुभ समाया है।

भाव = मौलिकता, मूल्य, मूल्य सम्प्रेषणा।

भंगिमा = मूल्य में तदाकार-तद्रूपता भाषा विहिन मुखमुद्रा।

मुद्रा = शरीर में मूल्य प्रभावी झलक, इसके अनुकूल मुद्रा अंगहार जिससे मूल्य व मूल्य सम्प्रेषणा दर्शकों में स्वीकृत व प्रभावी होना ही प्रयोजन है।

श्रवण = श्रेष्ठता, सहजता को सुनने की क्रिया यह मौलिक अधिकार है।

मौलिकता = जीव चेतना से मानव चेतना श्रेष्ठ, मानव चेतना से देव चेतना श्रेष्ठतर, देव चेतना से दिव्य चेतना श्रेष्ठतम होना स्पष्ट होना।

6.5 (14) शिक्षा-संस्कार व्यवस्था

शिक्षा = शिष्टता पूर्ण दृष्टि का उदय होना मूल्य, चरित्र, नैतिकता स्पष्ट एवं प्रमाणित होना।

शिष्टता

  • समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी सहज प्रमाण होना।
  • दृष्टा पद प्रतिष्ठा का जागृति सहज प्रमाण होना।
  • मानवीयता पूर्ण आचरण सहज प्रमाण होना।

संस्कार

  • जीवन जागृति एवं विधि स्वीकृति होना।

सहअस्तित्व नियति सहज विधि स्वीकार होना।