मानवीय संविधान

by A Nagraj

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स्वर्ग मोक्ष के रूप में आश्वासन इसका इसका तृप्ति बिन्दु नहीं मिलना

प्रमाण रिक्त रहा, रहस्यमय देव कृपा से प्रयोग क्रम में धरती बीमार

स्वर्ग, रहस्यमय ईश कृपा, वेद कृपा, होना रहा।

गुरु कृपा से मुक्ति का आश्वासन रहा।

प्रेरणा विधि रहस्यमय रहा।

राज युग से गणतंत्र विधि से जनप्रतिनिधियों का सहमति से शासन, सभी देश, राज, राष्ट्र के संविधान, व्यक्ति समुदाय चेतना से ग्रसित एवं शक्ति केन्द्रित शासन के रूप में है, जिसका विकल्प अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन, ज्ञान, विवेक, विज्ञान रूप में मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) शास्त्र, अखण्डता सार्वभौमता के अर्थ में प्रस्तुत है। यह प्रस्तुति रहस्य, भ्रम, अपराध मुक्ति के अर्थ में है ।

6.5 (13) जागृत मानव परंपरा का सहज वैभव

  • मानव चेतना विधि से मानवत्व सहज परिवार व्यवस्था से व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी से है।
  • मनाकार को साकार करने एवं मन:स्वस्थता का प्रमाण से है।
  • खनिज, वन, वन्य जीव को संतुलित बनाये रखते हुए और घरेलू जीवों को पालते हुए कृषि के आधार पर आहार, वन-खनिज के आधार पर आवास, इन्हीं आधार पर अलंकार, वस्तुओं का उत्पादन या निर्माण और उपयोग से है। प्रौद्योगिकी विधि से दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन संबंधी सुविधा प्राप्त करना।
  • कृषि व पशु पालन के आधार पर आहार संबंधी वस्तुओं से संपन्न होने से है। ग्राम, शिल्प, वन, खनिज के आधार पर आवास, अलंकार संबंधी वस्तुओं से सम्पन्न होने से है।

जागृत मानव के नृत्य : अंगहार, भंगिमा, मुद्रा भेद से भाव-भाषा प्रकाशन।