मानवीय संविधान

by A Nagraj

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वाद-विचार = वाद-संवाद, आख्यान, व्याख्यान, उपदेश, भाषण, चर्चायें, भाव अर्थात् मूल्य सहज प्रयोजन तर्क संगत विधि से समाधान मानसिकता का अध्ययन, अभिव्यक्ति है।

चर्चा = चिंतन पूर्वक प्रयोजनों का स्पष्ट होना।

भाषण = मौलिकता, मूल्य, प्रयोजन सहज रूप में संप्रेषित होना।

व्याख्या = व्यवहार व व्यवस्था में प्रमाणित होने के अर्थ में स्पष्ट होना।

आख्यान = आवश्यकता-अनिवार्यता स्पष्ट होना।

संवाद = पूर्णता अर्थात् गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के अर्थ में है एवं तर्क विधि से समाधान सुलभ होना है।

वाद = वास्तविकता पूर्वक समाधान सहज निष्कर्ष पूर्ण अध्ययन सुलभ रूप में प्रस्तुत करना।

विचार = विधिवत् प्रयोजन के अर्थ में विवेचना, विश्लेषण करना, स्पष्ट करना, स्पष्ट होना।

मानव लक्ष्य को प्रमाणित करना ही जागृत मानव परंपरा में विचार प्रयोजन है।

विवेचना = विधिवत् प्रयोजन व लक्ष्य आवश्यकता उपयोगिता-पुरकता सहज स्पष्टीकरण।

भाषा विधि प्रयोजन = भाषा सहज अर्थ में अस्तित्व में सहअस्तित्व, पद, अवस्था बोध होना।

पद अवस्था बोध

प्राणपद पदार्थावस्था वस्तु-बोध

भ्रांतिपद प्राणावस्था क्रिया-बोध

देवपद जीवावस्था स्थिति-बोध

दिव्यपद ज्ञानावस्था गति-बोध

परिणाम-बोध

फल प्रयोजन-बोध

मानव में, से, के लिए जागृति-बोध