मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 71

मानवीय संस्कृति सभ्यता का अधिकार

अनुभव मूलक अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा

संबंध-मूल्य निर्वाह परंपरा

मूल्यांकन-उभयतृप्ति निर्वाह परंपरा

व्यवस्था सहज निर्वाह परंपरा

दायित्व निर्वाह परंपरा इन्हें कलात्मक विधि

कर्त्तव्य सहज निर्वाह परंपरा से प्रस्तुत करना

पूर्णता के अर्थ में किया गया निर्वाह परंपरा

जागृतिपूर्वक जीने की कला व कृतियों के रूप में निर्वाह परंपरा

क्रियापूर्णता, मानव मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहित सर्वतोमुखी समाधान प्रमाण के रूप में वर्तमान होना रहना ही है।

जागृत मानव जीने का प्रमाण परंपरा ही मानव संस्कृति सभ्यता सहज मौलिक अधिकार है।

6.6 (1) कला

कला = श्रेष्ठता सहज उपयोगिता पूरकतावादी भाषा, भाव (मूल्य सम्प्रेषण) भंगिमा, मुद्रा, अंगहार प्रकाशन

भाषा = सत्य भास होना प्रकाशन एवं सम्प्रेषणा सहज अर्थ में।

मौलिकता (चारों अवस्था व पदों का) सहज, रूप-गुण-स्वभाव-धर्मात्मक मौलिकता, चारों अवस्था व पदों की मौलिकता, अखण्डता, सार्वभौमता सहज प्रकाशन मौलिक अधिकार है।

भास = सहअस्तित्व समझ में होने का संभावना सहज सूचना।

आभास = समझ स्वीकार होने का संभावना।

प्रतीति = चिंतन, साक्षात्कार समझ की अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा।

अनुभूति = प्रमाण बोध अनुक्रम एवं क्रम ही चारों अवस्था व पदों में निहित धर्म, स्वभाव सहज अभिव्यक्ति।