मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 72

6.6 (2) जागृत मानव परंपरा में प्रमाण सहज वैभव परंपरा है

ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता सहित ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी समेत परंपरा ही जागृत मानव परंपरा है।

ज्ञान = सहअस्तित्व सहज दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान सम्पन्नता (पारंगत प्रमाण)

विवेक = जीवन मूल्य, मानव लक्ष्य में पारंगत प्रमाण

विज्ञान = काल, क्रिया, निर्णय में पारंगत प्रमाण

मानवीयता पूर्ण आचरण जागृत मानव परंपरा है। मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान, मानवीय व्यवस्था, दश सोपानीय सार्वभौम व्यवस्था, अखण्ड समाज राष्ट्र के अर्थ में मानवीय व्यवस्था, मानवीय शिक्षा संस्कार परंपरा सहज परंपरा ही जागृत मानव परंपरा है। यह मौलिक अधिकार है।

मानव और नैसर्गिक संबंध = संबंध पूर्णता के अर्थ में अनुबंध

पूर्णता = क्रियापूर्णता, अखण्ड समाज के अर्थ में आचरणपूर्णता सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी सहज स्वीकृति आचरण, कार्य, व्यवहार, विचार, ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज प्रमाण परंपरा।

6.6 (3) जागृत मानव परंपरा में ही नैसर्गिक संबंधों का निर्वाह होता है।

  • मानवेत्तर प्रकृति यथा जीवावस्था, प्राणावस्था, पदार्थावस्था सहज वैभव के साथ उपयोगिता-पूरकता सहित संतुलन को प्रमाणित करना।
  • मानवेत्तर प्रकृति में संतुलन बनाये रखना।
  • ऋतु संतुलन के आधार पर वन खनिज का संरक्षण करना।
  • सम्पूर्ण वन वनस्पतियां बीज-वृक्ष विधि से आवर्तनशील है, इसे सुरक्षित रखना।
  • खनिज व वनस्पतियों के संतुलन को बनाये रखना व सुरक्षा करना।
  • धरती के वातावरण व पर्यावरण को संतुलित पवित्र बनाये रखना।

6.6 (4) मानवेत्तर प्रकृति का संबंध निर्वाह मौलिक अधिकार है